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पैरा खिलाड़ियों को भी मिलें आम खिलाड़ी जैसी सुविधाएं
अहमदाबाद। आजकल भारत की दो बेटियों की ही चर्चा हो रही है। एक पीवी सिन्धू और दूसरी मानसी जोशी। चर्चा की वजह इन शटलरों का विश्व चैम्पियन बनना है। गुजरात की रहने वाली मानसी जोशी ने महिला एकल में गोल्ड मेडल जीतकर भारत का नाम रोशन किया है। 30 साल की इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर मानसी जोशी ने एक सड़क हादसे में अपना एक पैर खो दिया, लेकिन मानसी का जज्बा कम नहीं हुआ। अपने घर अहमदाबाद लौटी मानसी का गुजरात स्पोर्ट्स ऑथॉरिटी की ओर से स्वागत किया गया। मानसी के साथ पारुल परमार जोकि वर्ल्ड चैम्पियनशिप में उसके साथ फाइनल में थीं वो भी अहमदाबाद से ही हैं। सच कहें तो पारुल और मानसी देश की शान हैं।
वर्ल्ड चैम्पियन मानसी जोशी और अर्जुन अवॉर्ड विजेता पारुल परमार दोनों का ही सपना है कि 2020 पैरा ओलम्पिक में देश का नाम रोशन करें। पैरा ओलम्पिक वर्ल्ड चैम्पियनशिप की खास बात यह थी कि फाइनल में दोनों ही भारतीय खिलाड़ी एक-दूसरे के सामने थीं। मानसी जोशी और पारुल परमार, जिसमें मानसी ने चार बार की पैरा बैडमिंटन चैम्पियन पारुल को हराकर गोल्ड मेडल खुद के नाम किया।
मानसी का कहना है कि उनके लिए शुरुआत में यह काफी चुनौतीपूर्ण था। वह पिछले एक साल से गोपीचंद अकादमी में ट्रेनिंग ले रही थीं, दिन में तीन-तीन सेशन करना और फिर फिजियो के लिए जाना काफी मुश्किल था। जब मैं टूर्नामेंट के लिए गई तो उम्मीद नहीं थी कि मैं गोल्ड अपने नाम करूंगी, लेकिन हां ये भरोसा जरूर था कि मैंने अलग तरह से तैयारी की थी, उससे उम्मीद थी कि कुछ अच्छा जरूर होगा।
मानसी ने इस जीत को हासिल करने के लिए काफी फिजिकल तैयारी के साथ-साथ मानसिक तौर पर भी तैयारियां की थीं। मानसी का कहना है कि मानसिक तौर पर शांत रहने के लिए उन्होंने कई किताबें पढ़ी थीं और मन को शांत रखना भी सीखा था। मानसी और पारुल दोनों ही भारत से हैं और दोनों ही साथ में फाइनल में पहुंचीं। मानसी का कहना है कि जिसको मैं अपना आदर्श मानती थी उन्हीं के सामने फाइनल खेलने का मौका मिला था। यह काफी दिलचस्प मैच रहा था। वहीं इस मैच में सिल्वर मेडल जीतने वाली पारुल परमार ने अब तक अपनी जिंदगी में बैडमिंटन में 35 अलग-अलग चैम्पियनशिप जीती हैं। पारुल परमार का कहना है कि ऐसा पहली बार है कि इतनी चैम्पियनशिप जीतने के बाद हमें तुरंत पैसा मिला है। आमतौर पर पैरा प्लेयर को स्पॉन्सर भी मिलना काफी मुश्किल रहता है।
मानसी का कहना है कि जिस तरह से आम खिलाड़ियों को मदद मिलती है, वैसी ही मदद पैरा खिलाड़ियों के लिए भी होनी चाहिए। इससे खिलाड़ी का मनोबल बढ़ता है। मानसी और पारुल दोनों ही अब टोक्यो ओलम्पिक की तैयारी कर रही हैं, दोनों ही चाहती हैं कि पहली बार पैरा ओलम्पिक में बैडमिंटन खेला जा रहा है, ऐसे में वही दोनों इसे जीतें। इन जिन्दादिल खिलाड़ियों की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। सच कहें तो ये पूरे देश के दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए एक मिसाल हैं। खासकर उन लोगों के लिए जो किसी बीमारी या दुर्घटना के कारण अपने शरीर का महत्वपूर्ण अंग खो देते हैं और जिंदगी को बोझ समझने लगते हैं। आठ साल पहले एक भयानक दुर्घटना में मानसी ने अपना एक पैर गंवा दिया था। 2011 में हुई ट्रक दुर्घटना को याद करते हुए मानसी आज भी सिहर उठती हैं। इस सड़क दुर्घटना के बाद उन्हें अस्पताल पहुंचाने में तीन घंटे देरी हो गई। खून से लथपथ मानसी ने ऑपरेशन थिएटर में 12 घंटे तक जिंदगी और मौत से संघर्ष किया। सर्जरी में डॉक्टरों को उनकी जिंदगी बचाने के लिए एक पैर काटना पड़ा।
50 दिन अस्पताल में गुजारने के बाद भी अपना एक पैर खो चुकी मानसी का हौसला नहीं टूटा। कुछ दिनों बाद वे जब घर आ गईं तो उन्हें अपना प्रिय खेल बैडमिंटन याद आया जिसे वे बचपन से प्यार करती थीं और जिला स्तर पर कई बार सफलता भी अर्जित कर चुकीं थीं। मानसी बताती हैं कि मेरे मन में यही चल रहा था कि मैं भले ही दौड़ नहीं सकती तो क्या हर्ज है कृत्रिम पैर के सहारे खड़े होकर विरोधी का मुकाबला तो कर सकती हूं। चार महीने बाद मानसी ने कृत्रिम पैर लगाकर अभ्यास शुरू किया और 2014 में वे पेशेवर बैडमिंटन खिलाड़ी बन गईं। बाद में उन्होंने हैदराबाद में गोपीचंद की बैडमिंटन अकादमी में ट्रेंनिंग शुरू कर दी। गोपीचंद जैसा नायाब कोच मिलने से दिव्यांग मानसी के हौंसले को नई उड़ान मिल गई।
गोपीचंद की अकादमी में जमकर पसीना बहाने वाली मानसी जोशी की झोली में पदक आने में देरी नहीं हुई। गोपीचंद की अकादमी में जमकर पसीना बहाने वाली मानसी ने 2015 में पैरा विश्व बैडमिंटन के मिश्रित युगल में रजत पदक जीता जबकि 2017 में वे कांस्य पदक जीतने में सफल रहीं। यह चैम्पियनशिप कोरिया में आयोजित हुई थी। दो साल की अथम मेहनत और तपस्या का ही परिणाम है कि मानसी ने बासेल में विश्व पैरा बैडमिंटन का स्वर्ण पदक अपने गले में पहना।