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श्रीप्रकाश शुक्ला
भारत को इस साल क्रिकेट विश्व कप में भले ही मायूसी हाथ लगी हो लेकिन कई अन्य खेलों की धुरंधर बेटियों ने विश्व विजेता बनकर देश को जरूर गौरवान्वित किया है। बेटियों का आर्थिक, मानसिक और शारीरिक चुनौतियों से उबरकर देश का नाम अंतरराष्ट्रीय खेल क्षितिज पर चमकाना निःसंदेह बड़ी बात है। सच कहें तो जमीं से उठकर फलक पर छाई इन युवा बेटियों ने अपने कौशल से देश में खेलों के उज्ज्वल भविष्य की उम्मीद जगाई है। पिछले कुछ महीनों में भारतीय खिलाड़ी बेटियों ने अपने स्वर्णिम कौशल से दुनिया भर में नारी शक्ति की जो आभा छोड़ी है, उससे अगले साल जापान के टोक्यो शहर में होने जा रहे ओलम्पिक खेलों से एकाएक भारतीय खेलप्रेमियों का अनुराग जाग उठा है। जीत-हार खेल का हिस्सा है लेकिन भारतीय बेटियों की यह सफलता इसलिए मायने रखती है क्योंकि इनमें से अधिकांश बेटियां उन घरों से ताल्लुक रखती हैं, जिनके यहां बमुश्किल दो वक्त ही चूल्हा जलता है।
शटलर पी.वी. सिन्धू और मानसी जोशी ने जहां बैडमिंटन में स्वर्णिम प्रदर्शन किया वहीं जमशेदपुर की कोमोलिका बारी और जबलपुर की रागिनी मार्को ने मैड्रिड में अपनी अचूक तीरंदाजी से दुनिया भर में वाहवाही लूटी है। हिमा दास और दुती चंद ने ट्रैक पर अपनी तेजी का जलवा दिखाया तो भारतीय हाकी बेटियों ने मेजबान जापान का मानमर्दन कर मादरेवतन का मान बढ़ाया है। तीरंदाजी की ही तरह भारतीय युवा शूटरों ने भी अपने सटीक निशानों से दुनिया भर में शोहरत हासिल की है। अब तक भारत के जिन आठ शूटरों ने टोक्यो ओलम्पिक का कोटा हासिल किया है उनमें चार बेटियां शामिल हैं। इन युवा शूटरों में अपूर्वी चंदेला, अंजुम मोदगिल, राही सरनोबत और मनु भाकर शामिल हैं। इन महिला शूटरों के अलावा भारत की युवा निशानेबाज इलावेनिल वालारिवन से भी देश को बहुत उम्मीदें हैं। हाल ही रियो-डी-जनेरियो में हुए आईएसएसएफ विश्व कप में इलावेनिल वालारिवन ने 10 मीटर एयर राइफल वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर यह जता दिया कि आने वाला कल उनका है। 20 वर्षीय इलावेनिल वालारिवन वर्ल्ड कप की इस कैटेगरी में गोल्ड जीतने वाली तीसरी भारतीय हैं, उनसे पहले सिर्फ अंजली भागवत और अपूर्वी चंदेला ही इस कैटेगरी में गोल्ड जीत सकी हैं।
हाल ही भारतीयों के लिए स्विट्जरलैंड का बासेल शहर तब यादगार बन गया जब स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी पी.वी. सिन्धू ने फाइनल फोबिया से मुक्त होकर पहली बार विश्व चैम्पियन बनने का गौरव हासिल किया। विश्व चैम्पियनशिप में ऐसा तमाशाई प्रदर्शन करने वाली सिन्धू भारत ही नहीं दुनिया की पहली खिलाड़ी बेटी हैं। पी.वी. ने विश्व चैम्पियनशिप में पांच पदक जीते हैं, जिनमें एक स्वर्ण, दो रजत तथा दो कांस्य पदक शामिल हैं। सिन्धू जैसा विश्व विजयी कीर्तिमान दुनिया की किसी भी शटलर के नाम नहीं है। देखा जाए तो पी.वी. सिन्धू अब तक विभिन्न प्रतियोगिताओं के फाइनल में 16 बार पहुंचीं हैं तथा पांच बार खिताबी जश्न मनाया है।
लगातार तीन साल से इस प्रतियोगिता का फाइनल खेल रही सिन्धू पर दबाव था लेकिन उन्होंने अपने अदम्य साहस और कौशल से फाइनल फोबिया से उबरते हुए जापानी बाला की चुनौती को 34 मिनट में ही ध्वस्त कर दिया। देखा जाए तो इस बार प्रतियोगिता की शुरुआत से ही शटलर पी.वी. ने अपना स्वाभाविक खेल दिखाया तथा अपनी लम्बाई और चपलता से सबको सबको चकमा देते हुए दुनिया की शीर्ष वरीय खिलाड़ियों को हराया। सिन्धू ने फाइनल में जापान की तीसरी वरीयता प्राप्त नोजोमी ओकूहारा को एकतरफा मुकाबलों में हराकर न केवल खिताब जीता बल्कि उससे 2017 में फाइनल में मिली पराजय का बदला भी चुका लिया। निःसंदेह सिन्धू ने अपनी इस कामयाबी के लिये भरपूर मेहनत की तथा उन खामियों से अपने आपको उबारा जो फाइनल में उसकी हार का कारण बनती रही हैं।
स्वाभाविक खेल के जरिये पैदा हुआ आत्मविश्वास ही पी.वी. सिन्धू की शानदार जीत का सारथी बना। सिन्धू की यह कामयाबी सिन्धु सी गहराई लिये हुए है जो इस खेल में चीन, जापान, इंडोनेशिया तथा इंग्लैण्ड का वर्चस्व तोड़ने वाली है। मौलिक प्रतिभा की धनी सिन्धू की नजर अब अगले ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने के लक्ष्य की ओर है। बैडमिंटन के प्रति पी.वी. के जुनून व समर्पण को देखते हुए यह लक्ष्य मुमकिन लगता है। सिन्धू की कामयाबी किसी प्रेरक कहानी सरीखी है जो बताती है कि लगातार हार के बाद भी यदि धैर्य न खोया जाये तथा लक्ष्य को केन्द्र में रखा जाये तो कामयाबी जरूर कदम चूमती है। आमतौर पर लगातार हार के बाद तमाम दिग्गज हौसला खोने लगते हैं तथा विजय पथ से भटक जाते हैं, लेकिन सिन्धू ने इसके उलट कामयाबी की एक नई पटकथा लिख डाली।
सिन्धू की इस जीत के साथ ही इसी खेल में पैरा शटलर मानसी जोशी ने भी अपने जोशीले और दमदार खेल से विश्व पैरा बैडमिंटन चैम्पियनशिप का एकल खिताब अपने नाम किया। मानसी जोशी ने बासेल में विश्व पैरा बैडमिंटन चैम्पियनशिप के महिला एकल एसए-3 फाइनल में हमवतन पारुल परमार को हराकर खिताब जीता। 2011 में एक दुर्घटना में अपना बायां पैर गंवाने वाली मानसी 2015 से बैडमिंटन खेल रही हैं। मानसी अपने आपको फिट रखने के लिए जहां जिम का सहारा लेती हैं वहीं खेल को नई धार देने के लिए घण्टों कोर्ट पर पसीना बहाती हैं। मानसी जोशी को बचपन से ही बैडमिंटन में दिलचस्पी थी। पढ़ाई से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर 30 वर्षीय मानसी ने इस स्वर्णिम सफलता से पहले 2015 में पैरा वर्ल्ड चैम्पियनशिप में मिक्स्ड डबल्स में रजत तो 2017 में दक्षिण कोरिया में हुई विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीता था।
भारतीय शटलरों की शानदार सफलता से तीरंदाज बेटियों को भी जीत का संदेश मिला। मैड्रिड में खेली गई जूनियर विश्व तीरंदाजी चैम्पियनशिप में जमशेदपुर की टाटा तीरंदाजी अकादमी की 17 साल की तीरंदाज कोमोलिका बारी अण्डर-18 आयु वर्ग में विश्व चैम्पियन बनने वाली भारत की दूसरी तीरंदाज बनीं। कोमोलिका से पहले दीपिका कुमारी ने 2009 में यह खिताब जीता था। 2016 में कोमोलिका के पिता घनश्याम बारी ने अपनी बेटी को तीरंदाजी सीखने के लिए इसलिए भेजा था ताकि वह फिट रहे लेकिन उसने तीर-कमान को ही अपना हमसफर बना लिया। कोमोलिका के तीरंदाजी के प्रति बढ़ते रुझान ने एक समय तो पिता घनश्याम को ही आर्थिक परेशानी में डाल दिया था। घनश्याम के लिए बेटी को डेढ़ से तीन लाख तक का धनुष दिला पाना आसान नहीं था लेकिन उन्होंने बेटी के सपनों को साकार करने के लिए अपने घर को बेच दिया। इधर पिता ने घर बेचा उधर कोमोलिका को टाटा आर्चरी एकडेमी में जगह मिल गई। एकेडमी में जगह मिलने के बाद कोमोलिका को सारी सुविधाएं वहीं से मिलने लगीं।
कोमोलिका की मां लक्ष्मी बारी आंगनबाड़ी सेविका हैं। दरअसल लक्ष्मी चाहती थीं कि उनकी बिटिया तीरंदाजी में कौशल दिखाए क्योंकि इस खेल में चोट का खतरा नहीं होता। मां की पसंद को ध्यान में रखते हुए ही कोमोलिका ने तीरंदाजी को अपनाया। कोमोलिका की इस सफलता का श्रेय टाटा आर्चरी एकेडमी के साथ उसके चचेरे भाई राजकुमार बारी को जाता है जिनकी साइकिल पर सवार होकर वह प्रारम्भिक दिनों में अभ्यास के लिए तार कम्पनी सेण्टर जाती थी। तार कम्पनी सेण्टर में लगभग चार वर्षों के दौरान मिनी व सब जूनियर राष्ट्रीय तीरंदाजी प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन के बाद ही कोमोलिका को 2016 में टाटा आर्चरी एकेडमी में प्रवेश मिला। कोमोलिका अब तक डेढ़ दर्जन राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पदक जीत चुकी हैं। अब झारखंड की इस बेटी को तीरंदाजी में दीपिका कुमारी के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
कोमोलिका की ही तरह मध्य प्रदेश तीरंदाजी एकेडमी जबलपुर की तीरंदाज रागिनी मार्को ने भी मैड्रिड में अपने सटीक निशानों की धूम मचाते हुए स्वर्णिम सफलता हासिल की। रागिनी ने फिरोजपुर के सुखबीर सिंह के साथ मिलकर भारत को विश्व युवा तीरंदाजी प्रतियोगिता का स्वर्ण पदक दिलाया। फाइनल मुकाबले में रागिनी और उसके साथी सुखबीर ने स्विट्जरलैंड की एंड्रिया वलारो और जेने हुंसपर्गर की जोड़ी को पराजित किया। रागिनी तीरंदाजी से पहले थ्रो बाल की राष्ट्रीय चैम्पियन रही हैं। रागिनी के सब इंस्पेक्टर पिता मान सिंह चाहते थे कि उनकी बेटी व्यक्तिगत खेलों में हिस्सा ले। आखिर, 2017 में सामाजिक चोचलेबाजी की परवाह किए बिना उन्होंने अपनी बेटी का प्रवेश मध्य प्रदेश तीरंदाजी एकेडमी जबलपुर में कराया और प्रशिक्षक रिछपाल ने मुस्कान किरार की ही तरह रागिनी मार्को को भी स्वर्णिम तीर बरसाने के गुर सिखाये। मध्य प्रदेश के लिए यह संतोष और खुशी की बात है कि उसकी एक नहीं दो-दो बेटियां तीरंदाजी में देश को स्वर्णिम सौगात दे रही हैं।
सफलता की इसी कड़ी में भारत की जूनियर मुक्केबाज बेटियों ने सर्बिया के वरबास में आयोजित तीसरी नेशंस कप मुक्केबाजी में चार स्वर्ण, चार रजत और चार कांस्य पदक अपने नाम किए। 48 किलोग्राम भारवर्ग में रूस की एलेना ट्रेमासोवा को 5-0 से मात देने वाली भारत की तमन्ना को प्रतियोगिता का 'सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज' घोषित किया गया। भारत को अन्य तीन स्वर्ण पदक 57 किलोग्राम भारवर्ग में अम्बेशोरी देवी, 60 किलोग्राम भारवर्ग में प्रीति दहिया और 66 किलोग्राम भारवर्ग में प्रियंका ने दिलाए। मुक्केबाजी में ही एम.सी. मैरीकॉम की उपलब्धियां और जज्बा हर महिला के लिए आदर्श है। मैरीकॉम की शानदार उपलब्धियों को देखते हुए ही हाल ही एशिया महाद्वीप की सर्वश्रेष्ठ महिला खिलाड़ी के अवार्ड से नवाजा गया। एशियन स्पोर्ट्स राइटर्स यूनियन द्वारा आयोजित एशिया के पहले पुरस्कार समारोह में मैरीकॉम को यह पुरस्कार प्रदान किया गया। 36 साल की मैरीकॉम एकमात्र महिला मुक्केबाज हैं, जिन्होंने विश्व चैम्पियनशिप में सात पदक जीते हैं।
चीन के चेंगडू शहर में 8 से 18 अगस्त 2019 तक आयोजित हुए वर्ल्ड पुलिस एण्ड फायर गेम्स में भारत की बेटियों ने कमाल का प्रदर्शन करते हुए कुश्ती, पावरलिफ्टिंग, एथलेटिक्स तथा मुक्केबाजी में स्वर्णिम सफलताएं हासिल कीं। पावरलिफ्टिंग में झारखण्ड की सुजाता भकत ने दो स्वर्ण पदक जीते वहीं कुश्ती में दीपिका जाखड़ तथा मंजू, मुक्केबाजी में कविता चहल और बंटी तथा एथलेटिक्स में प्रतापगढ़ की खुशबू गुप्ता व राजस्थान की मीनू ने स्वर्णिम सफलताएं हासिल कीं। खुशबू ने जहां पांच किलोमीटर दौड़ में स्वर्णिम सफलता हासिल की वहीं राजस्थान पुलिस की उप निरीक्षक मीनू ने पांच व 10 किलोमीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया। इसी तरह रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स की मंजू सूरा ने कुश्ती में स्वर्ण पदक तो जूडो में कांस्य पदक जीता। विश्व पुलिस गेम्स के अलग-अलग खेलों में एक स्वर्ण व एक कांस्य पदक सहित दो पदक जीतने वाली वह भारतीय रेलवे की एकमात्र महिला खिलाड़ी हैं। इसी तरह हरियाणा की अंजलि देवी ने चोट के बाद प्रतिस्पर्धी दौड़ में शानदार वापसी करते हुए नवाबों के शहर लखनऊ में हुई 59वीं राष्ट्रीय अंतरराज्यीय एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की महिला 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर दोहा में होने वाली विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप के लिए पात्रता हासिल की।
साढ़े तीन साल के लम्बे इंतजार के बाद पैरालम्पिक पदकधारी दीपा मलिक को खेल दिवस पर देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के हाथों राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार मिलना खेलों में एक नई शुरुआत है। पहली भारतीय महिला पैरा एथलीट का यह खेल रत्न सम्मान अन्य दिव्यांग बेटियों को खेल के क्षेत्र में आने को प्रेरित करेगा। दीपा ने 2016 रियो पैरालम्पिक में गोलाफेंक एफ-53 में रजत पदक जीता था। खेल रत्न दीपा की यह उपलब्धि दिव्यांग लोगों में छुपी काबिलियत के प्रति लोगों के रवैये में जरूर बदलाव लाएगी। दीपा (49) यह प्रतिष्ठित अवॉर्ड जीतने वाली सबसे उम्रदराज खिलाड़ी हैं। खेल पुरस्कारों की इसी कड़ी में एथलीट स्वप्ना बर्मन, पहलवान पूजा ढांडा, निशानेबाज अंजुम मोदगिल, मुक्केबाज सोनिया लाठर, क्रिकेटर पूनम यादव तथा पहलवान विनेश फोगाट को भी शाबासी देनी होगी जिन्होंने विभिन्न खेल मंचों पर अपने-अपने खेल में भारत का गौरव बढ़ाया है।
मौजूदा दौर में पक्षपात और पूर्वाग्रह जैसे भाव जहां जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को दूषित कर रहे हैं वहां खेल प्रवीणता एवं योग्यता के दुर्लभ पर्याय बने हुए हैं। खेलने-कूदने वाला समाज ही स्वस्थ और तंदुरुस्त समाज होता है। वैसे भी स्वास्थ्य एवं प्रसन्नता एक-दूसरे के पूरक हैं। स्वस्थ एवं खुशहाल समाज के निर्माण में खेलों की महत्वपूर्ण भूमिका है। खेलों के बारे में कहा जाता है कि उनमें दुनिया को बदलने की शक्ति होती है। हमारे समक्ष तमाम आसन्न चुनौतियों के अलावा एक महत्वपूर्ण लक्ष्य यह भी होना चाहिए कि हमें देश में खेल संस्कृति को पल्लवित-पुष्पित करना है। आज जरूरत भारतीय समाज को खेल देखने वाले से खेल खेलने वाले समाज में बदलने की है। हमें महज सहभागिता से आगे बढ़कर खेलों में जीतने का मंत्र तलाशना होगा।
आज खेलों की अहमियत को नकारा नहीं जा सकता। हम ऐसे अनुभवों के भी साक्षी होते हैं जब अपने क्रिकेटरों, पहलवानों, मुक्केबाजों, निशानेबाजों, एथलीटों, शटलरों और शतरंज के ग्रैंड मास्टरों के प्रदर्शन पर गौरवान्वित होते हैं। हालांकि एक विडम्बना यह भी है कि ऐसे पल विरले ही आते हैं। एक कड़वा सत्य यह भी है कि अपनी आबादी और अर्थव्यवस्था के लिहाज से खेलों के मोर्चे पर हम अपनी क्षमताओं से काफी कमतर हैं। विषम परिस्थितियों के होते हुए भी बेटियों का खेल क्षेत्र में नाम रोशन करना बहुत बड़ी बात है। आओ बेटियों के स्वर्णिम प्रदर्शन पर तालियां पीटें और उन्हें खेल की दिशा में प्रोत्साहित करें ताकि स्वस्थ भारत की संकल्पना को फलीभूत किया जा सके।