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खेलपथ प्रतिनिधि
ग्वालियर। तीन बार के ओलम्पिक हाकी स्वर्ण पदक विजेता मेजर ध्यान चंद के बेटे अशोक कुमार ने कहा है कि अवार्ड में राजनीतिक दखल ने उनके पिता को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान-भारत रत्न से महरूम रखा है। भारतीय हॉकी टीम के कप्तान रह चुके अशोक ने खेल दिवस के मौके पर कहा, "पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दादा (ध्यानचंद) को भारत रत्न देने की फाइल पर हस्ताक्षर कर दिए थे और तब के खेल मंत्री को इस बारे में बता दिया था।" उन्होंने कहा, "लेकिन बाद में इस फैसले को खारिज कर दिया गया। ऐसा करके सरकार ने न सिर्फ हमें अपमानित किया है बल्कि राष्ट्र के एक बेहतरीन खिलाड़ी का भी अपमान किया।" विश्व विजेता और ओलम्पिक पदक विजेता अशोक कुमान ने कहा, "अब यह सरकार पर है कि वह देखे कि ध्यानचंद को भारत रत्न मिलना चाहिए या नहीं।" आजादी के बाद विश्व के सर्वश्रेष्ठ ड्रिबलरों में गिने जाने वाले अशोक ने कहा कि देश को ध्यानचंद का योगदान नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने कहा, "ब्रिटिश साम्राज्य के समय उनमें इतनी हिम्मत थी कि वह अपने सूटकेस में तिरंगे को लेकर बर्लिन ओलम्पिक-1936 खेलने गए थे।" अशोक ने कहा, "जब भारत ने फाइनल में जर्मनी को हराया था तब दद्दा ने भारत के झंडे (उस समय भारतीय झंडे में अशोक चक्र की जगह चरखा होता था) को लहराया था।" उन्होंने कहा, "अगले दिन सहगल ने दद्दा और उनकी पूरी टीम को डिनर पार्टी में बुलाने के लिए अपनी कार भेजी और डिनर के बाद सहगल ने सभी को महंगी घड़ियां दीं। वह घड़ी मेरे पिता ने जीवन भर अपनी कलाई पर पहनी।"
अपने पिता कि सरलता के बारे में बात करते हुए अशोक ने कहा, "70 के दशक के मध्य में दद्दा को झांसी में एक कार्यक्रम में बुलाया गया था। आयोजकों ने वाहन भेजने में देरी कर दी तो दद्दा ने अपने पड़ोसी से उन्हें वहां छोड़ कर आने के लिए कहा। उन्होंने कहा, "पड़ोसी के पास पुरानी साइकिल थी और दद्दा उसके साथ समय पर कार्यक्रम में पहुंच गए। आयोजकों को इस बात के लिए शर्मिंदगी हुई लेकिन उनका हैरान होना अभी और बाकी था। दद्दा ने कहा कि वह अपने दोस्त के साथ साइकिल पर आए हैं और उसी के साथ वापस जाएंगे। यह बताता है कि वह कितने सरल और किसी भी तरह की मांग न करने वाले थे।"
अशोक ने कहा कि उनके पिता के खेल को उस समय के बॉलीवुड स्टार के.एल. सहगल, पृथ्वी राज कपूर, अशोक कुमार जैसे दिग्गज लोग देखा करते थे। उन्होंने कहा, "1930 के दशक के आखिरी में, शायद 1937 में, मेरे पिता उस समय गांधी के बाद यूरोप में दूसरे सबसे चर्चित भारतीय थे। वह बॉम्बे कप में हिस्सा ले रहे थे।वह अपने मशहूर क्लब झांसी हीरोज का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। एक मैच में पृथ्वीराज कपूर और के.एल. सहगल बैठे थे। हाफ टाइम के समय सहगल ने मेरे पिता से कहा कि उनकी टीम झांसी हीरोज अपने स्तर के मुताबिक नहीं खेल रही और 1-2 से पीछे है। सहगल ने कहा कि अगर मेरे पिता गोल करते हैं तो वह हर गोल पर उनके लिए गाना गाएंगे। तब दद्दा ने 35 मिनट में नौ गोल दागे थे। ध्यान चंद के जन्म दिवस 29 अगस्त को खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके बेटे ने कहा, "अवार्ड मांगे नहीं जाते. अवार्ड की चाह भी नहीं होती। अवार्ड की भीख नहीं मांगी जाती। जो हकदार हैं, सरकार उन्हें अवार्ड देती है।"