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मध्य प्रदेश में खेलों की लीला न्यारी
श्रीप्रकाश शुक्ला
ग्वालियर। खेल किसी भी देश की युवा पीढ़ी के दमखम का आईना होते हैं। भारत में आजादी के बाद से ही खेलों के नाम पर अनाप-शनाप पैसा खर्च किया गया लेकिन मैदानों की बजाय घोड़े कागजी ही दौड़े नतीजन हम आजादी के 72 साल बाद भी वहीं के वहीं हैं। सच्चाई यह है कि देश के अधिकांश स्कूलों में खेल मैदान और खेल अध्यापक नहीं हैं बावजूद खेल होते हैं और सरकारी पैसे का खुलकर बंदरबांट होता है। मध्य प्रदेश की बात करें तो यहां खेलों का बजट दो अरब रुपये से अधिक है लेकिन हम किसी खिलाड़ी पर भरोसा नहीं कर सकते कि वह मेडल जीतेगा ही। इसकी वजह प्रतिभाओं की कमी नहीं बल्कि स्कूल-शिक्षा विभाग तथा खेल एवं युवा कल्याण विभाग की उदासीनता और खेलों के नाम पर होता भ्रष्टाचार है। स्कूल शिक्षा विभाग में खेलों का मौसम शुरू हो चुका है, इसी के साथ खेल मैनेजरों के ठेके भी उठने लगे हैं।
केन्द्र सरकार खेलो इंडिया के नाम पर पिछले दो साल से अरबों रुपये निसार कर रही है। राष्ट्रीय खेल नीति-2001 आए 19 साल हो गए लेकिन खेलों एवं शारीरिक शिक्षा को शैक्षिक पाठ्यक्रम के साथ मिलाने तथा सेकेण्डरी स्कूल तक शिक्षा का अनिवार्य विषय बनाने तथा इसे छात्र की मूल्यांकन पद्धति में सम्मिलित करने का काम दो कदम भी आगे नहीं बढ़ा है। राष्ट्रीय खेल नीति में देश के सभी स्कूलों में खेल मैदानों और उपस्करों सहित अवस्थापना की उपलब्धता में बढ़ोत्तरी करने की बातें कही गई हैं लेकिन सही मानीटरिंग न होने से अधिकांश कार्य कागजों में ही हुए हैं। खेलों के समुन्नत विकास में खेल मैदानों और काबिल खेल प्रशिक्षकों का होना जरूरी है लेकिन देश के अधिकांश शैक्षिक संस्थाओं में न तो मैदान हैं और न ही शारीरिक शिक्षक, ऐसे में खेलों में अनाप-शनाप पैसा क्यों जाया हो रहा है, यह समझ से परे है।
मध्य प्रदेश शिक्षा विभाग के अन्तर्गत राज्य के सभी जनपदों में काफी संख्या में विद्यालय संचालित हैं। इन विद्यालयों में जनपद के अधिकांश प्रतिभाली बालक-बालिकाएं नियमित शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। राष्ट्रीय खेल नीति में विद्यालयों में राष्ट्रीय शारीरिक स्वस्थता (फिटनेस) कार्यक्रम को लागू करने तथा इसका मूल्यांकन करने की बातें कही गई हैं लेकिन आज तक इस बात की तहकीकात नहीं की गई कि इस दिशा में कुछ हुआ भी कि नहीं। देखा जाए तो खेल प्रतियोगिताएं कराने के लिए अब पैसे की कमी का रोना नहीं रोया जा सकता। मध्य प्रदेश खेल आयोजनों के मामले में सहखर्ची है भले ही उसे राष्ट्रीय खेलों में सहभागिता के लिए अन्य प्रदेशों के खिलाड़ियों को उतारना पड़ता हो।
खेल एवं शारीरिक शिक्षा का स्वांग प्राथमिक से माध्यमिक स्तर तक हर साल परवान चढ़ता है लेकिन अधिकांश पैसा आयोजनों की भव्यता में स्वाहा हो जाता है। खिलाड़ियों को गंतव्य तक पहुंचाने, उनको ठहराने और खानपान की व्यवस्थाओं को देखने के बाद शिक्षा विभाग की आंखें बेशक बंद रहती हों लेकिन खिलाड़ियों की आंखों से बहते आंसू सरकारी मंशा का उपहास जरूर उड़ाते हैं। खेलनहारों को इस बात का भान होना चाहिए कि हर खिलाड़ी अपने अभिभावकों के पैसे से ही साल भर अपना खेल निखारता है, बदले में उसे शिक्षा विभाग कुछ रुपयों के स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक गले में डालकर वाहवाही लूटता है। दुख की बात है खेलों के नाम पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये खर्च तो होते हैं लेकिन बालक-बालिकाएं ट्रेनों की जनरल बोगियों में खेलों के गंतव्य स्थल तक पहुंचते हैं जबकि बिल-वाउचर भ्रष्टाचार की कहानी कहते हैं।
वर्तमान में खेल अवस्थापना सुविधाओं का विकास एवं सुदृढ़ीकरण नगरीय क्षेत्र में खेल विभाग एवं ग्रामीण क्षेत्र में युवा कल्याण विभाग द्वारा किया जा रहा है। जनपद, नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ खेल मैदानों के विकास से सभी बालक-बालिकाओं हेतु पर्याप्त खेल सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। यदि सभी विद्यालयों को जिनके पास भूमि उपलब्ध है, मिनी स्टेडियम का स्वरूप दिया जाये तो खेल सुविधाओं की उपलब्धता के साथ बालक-बालिकाओं हेतु नियमित खेल अभ्यास का सुअवसर प्राप्त हो सकेगा। इस हेतु शिक्षा, खेल एवं युवा कल्याण विभाग में समन्वय एवं एकजुटता के साथ लक्ष्य प्राप्ति हेतु प्रयास की आवश्यकता है। प्रत्येक विद्यालय में खेल मैदानों के सृजन एवं सुदृढ़ीकरण से नियमित खेलों का अभ्यास कराने हेतु प्रशिक्षकों की तैनाती की जानी आवश्यक होगी। खेलों में तरक्की के लिए तेली का काम तमोली से कराने की पद्धति से काम नहीं चलने वाला।
यदि सरकार या शिक्षा विभाग जरूरत के मुताबिक प्रशिक्षक नहीं तैनात कर सकती तो विद्यालय में कार्यरत स्वस्थ एवं खेलप्रेमी शिक्षकों को खेल विभाग के माध्यम से प्रारम्भिक खेल प्रशिक्षण दिलवाकर इनकी सेवाएं खेल प्रभारी के रूप में ली जा सकती हैं। इस अतिरिक्त कार्य हेतु इन शिक्षकों को मानदेय दिये जाने की भी व्यवस्था शिक्षा विभाग द्वारा की जा सकती है। जो भी हो मध्य प्रदेश में खेलों का स्याह सच खिलाड़ियों की दुर्दशा से सहज ही लगाया जा सकता है। हाल ही खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने खेल आयोजनों की राशि में काफी बढ़ोत्तरी की है, खिलाड़ियों को इसका कितना लाभ मिलेगा, यह समय बताएगा।