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खेल पुरस्कारों में भी होती है राजनीति
खेल दिवस पर खिलाड़ियों और खेल प्रशिक्षकों को दिए जाने वाले खेल पुरस्कारों में भी राजनीति होती है। यदि राजनीति नहीं होती तो शायद पद्मश्री कृष्णा पूनिया खेल रत्न से वंचित नहीं हुई होतीं। कहने को खेल पुरस्कारों के लिए मानक तय होते हैं लेकिन उनसे परे निर्णय लिए जाते हैं। चक्का फेंक की एथलीट रहीं कृष्णा पूनिया भी राजनीति का शिकार हुई हैं। कृष्णा को खेल रत्न न मिले इसके लिए आखिरी क्षणों में सूची में बदलाव भी हुआ। अतीत पर नजर डालें तो जब निशानेबाज रंजन सोढ़ी का नाम जब खेल रत्न के लिए घोषित हुआ था तब काफी विवाद हुआ था। तब पैनल के कुछ सदस्यों ने चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाए थे। पता चला है कि जब पैनल के अधिकतर सदस्यों ने खेल रत्न के लिए मतदान का फैसला किया था तब सोढ़ी का नाम सूची में शामिल नहीं था। तब चयन पैनल के एक सदस्य ने कहा था कि पैनल के 12 में से 11 सदस्यों ने पूनिया और लंदन पैरालम्पिक खेलों में रजत पदक जीतने वाले एच.एन. गिरिशा का नाम मतदान के लिए चुना था।
रिपोर्टों के अनुसार तब अंजलि भागवत के बैठक में देर से आने के बाद परिदृश्य बदला और गिरिशा का नाम हटा दिया गया, इसके बाद सोढ़ी और पूनिया के बीच मतदान हुआ। पूनिया के नाम पर विचार करने की मांग के बीच तत्कालीन खेलमंत्री जीतेंद्र सिंह ने इस मसले पर अपने सचिव पी.के. देब के साथ चर्चा की लेकिन मामले को रफा-दफा कर दिया गया। सच कहें तो उसके बाद कई ऐसे खिलाड़ियों को खेल रत्न मिला जिनका प्रदर्शन कृष्णा पूनिया से कमतर रहा है।