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12 साल की उम्र में गुजर गए थे पिता, मां ने संभाला परिवार
नई दिल्ली: स्ट्रांजा कप मुक्केबाजी टूर्नामेंट में रजत और इंडिया ओपन तथा थाईलैंड ओपन में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली भारत की महिला मुक्केबाज मंजू रानी का मानना है कि एआईबीए वुमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में भाग लेना उनके लिए सपने सच होने जैसा है. मंजू भारत की उस 10 सदस्यीय महिला टीम में शामिल हैं जो सात से 21 सितंबर तक रूस में होने वाली एआईबीए वुमेन्स वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व करेगी. मंजू सहित पांच ऐसे मुक्केबाज हैं, जो पहली बार इसमें हिस्सा लेने जा रही हैं. मंजू ने कहा कि वह इस चैंपियनशिप में भाग लेने को लेकर काफी उत्साहित हैं. उन्होंने कहा, "इसमें भाग लेना मेरे लिए किसी सपने के सच होने से कम नहीं है. इससे पहले, मैंने कभी इसमें भाग लेने के बारे में सोचा नहीं था. मैं वहां पर जाने और इसमें खुद को साबित करने को लेकर बहुत उत्साहित हूं." उन्होंने कहा, "मुझे लगता कि इस चैंपियनशिप में पदक जीतने के लिए मुझे और ज्यादा ट्रेनिंग करने की जरूरत है और मैं उसी के अनुसार मेहनत कर रही हूं."
मुझे खुद के ऊपर विश्वास
मंजू ने इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में तीन दिनों तक चले ट्रायल्स में प्रेसिडेंट कप की गोल्ड मेडल विजेता मोनिका को हराकर विश्व चैंपियनशिप के लिए टीम में अपनी जगह पक्की की. उन्होंने कहा, "ट्रायल्स के लिए मेरी ट्रेनिंग अच्छी थी, इसलिए मुझे विश्वास था कि मैं उनको हरा सकती हूं. मुझे पूरी उम्मीद थी कि मैं उनको कड़ी टक्कर दे सकती हूं. उस समय मैंने परिणाम के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचा था कि ऐसा परिणाम आएगा, लेकिन मुझे खुद के ऊपर विश्वास था." पिता का निधन हो गया था हरियाणा के रोहतक जिले की रहने वाली मंजू जब 12 साल की थी, तभी उनके पिता का निधन हो गया था. इसके बाद उनकी मां ने उन्हें संभाला. वह कहती हैं कि उनके लिए मुक्केबाजी में यहां तक पहुंचना बहुत मुश्किल था, लेकिन उनकी मां की मेहनत और पेशेवर मुक्केबाज बीजिंग ओलम्पिक में ब्रॉन्ज मेडल जीत चुके विजेन्दर सिंह तथा छह बार की विश्व चैम्पियन एमसी मैरीकॉम से प्रेरित होकर उन्होंने मुक्केबाजी को अपना सब कुछ मान लिया. उन्होंने कहा, "हरियाणा में कबड्डी का बहुत बड़ा क्रेज है और मैं भी शुरू में कबड्डी खेलती थी. लेकिन विजेन्दर सर और मैरीकॉम दीदी को टीवी पर खेलते देखकर मेरा मन भी मुक्केबाजी की ओर आकर्षित होने लगा. मुझे लगा कि जब सर और दीदी इतने ऊपर तक पहुंचे हैं तो हम भी पहुंच सकते हैं."
हरियाणा में भेदभाव ज्यादा बुल्गारिया के स्ट्रांजा कप में रजत और इंडिया ओपन तथा थाईलैंड ओपन में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली मंजू ने हरियाणा में भाई-भतीजावाद और भेदभाव की वजह से पंजाब से खेलना शुरू किया. उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा, "हरियाणा में राजनीति, भाई-भतीजावाद और भेदभाव ज्यादा है. मेरे शानदार प्रदर्शन के बावजूद जब मुझे हरियाणा में मौका नहीं मिला तो फिर मैंने पंजाब का रूख किया और यहां का प्रतिनिधित्व करना शुरू किया. जिस तरह से हरियाणा का माहौल है, उस हिसाब से मुझे नहीं लगता है कि मैं यहां तक पहुंच पाती." तीन बार की जूनियर राष्ट्रीय चैंपियन मंजू ने अपने अगले लक्ष्य को लेकर कहा, "मेरा विश्व चैंपियनशिप में खेलने का मेरा एक सपना पूरा हो चुका है और अब मैं ओलम्पिक में अपने देश का प्रतिनिधित्व करना चाहती हूं. इसके लिए मैंने अपनी ट्रेनिंग और तैयारी शुरू कर दी है."
शहर की लड़कियों के मेडल देखकर हुई प्रेरित
मंजू ने बताया कि उसके पिता बीएसएफ में थे। जब वो 9वीं में थी तो स्कूल की लड़कियां बॉक्सिंग में पदक जीतकर लाई थीं। उस समय मन में आया कि मैं भी पदक जीत सकती हूं। पिता अपने दोस्त साहिब सिंह के पास ले गए थे। वह लड़कियों को बॉक्सिंग सिखाते थे। उनसे बॉक्सिंग की ट्रेनिंग लेनी शुरू की। स्कूल स्तर में पहली बार स्वर्ण पदक जीता। स्टेट चैंपियनशिप में भी पदक जीता। मंजू ने बताया कि साल 2010 में उसके पिता की कैंसर से मौत हे गई थी। उनकी मां इशवंती हाउसवाइफ हैं। रोहतक शहर में अब भी दस लड़कियां बॉक्सिंग की कोचिंग ले रही है। मंजू ने पहले कबड्डी खेलना शुरु किया, लेकिन उसे व्यक्तिगत खेल में रुचि अधिक थी। फिर उसे अंकल साहिब सिंह ने बॉक्सिंग में जाने को कहा। इसके बाद मंजू ने नेशनल खेला और स्वर्ण पदक जीत लिया है।
वर्ल्ड चैंपियन मैरीकॉम हैं आदर्श
मंजू ने बताया कि वह वर्ल्ड चैंपियन मैरीकॉम की तरह बनना चाहती हैं। वर्ष 2020 में होने वाले ओलंपिक में क्वालीफाई करना और देश के लिए पदक जीतना लक्ष्य होगा। बाक्सिंग में यहां तक के सफर तक पहुंचाने में कोच मैडम अमनप्रीत, लीलाधर, सुबे सिंह, धालीवाल का अहम रोल है। मंजू का कहना है कि लड़कियों को अपनी उम्र के अनुसार शरीर का वजन बनाए रखना चाहिए। फास्ट फूड का सेवन न करें। मंजू को पेंटिंग करने का भी शौक है।