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नयी दिल्ली।
अपने स्वर्णिम प्रदर्शन से सुर्खियां बटोर रही धाविका हिमा दास को सलाह देते हुए एथलेटिक्स विशेषज्ञों और पूर्व खिलाड़ियों ने कहा है कि विश्व चैम्पियनशिप और ओलम्पिक जैसी प्रतियोगिताओं के लिये उसे अधिक प्रतिस्पर्धी टूर्नामेंट खेलने होंगे। बीते महीने 5 स्वर्ण अपनी झोली में डालने वाली हिमा ने साल की अपनी पहली 200 मीटर प्रतिस्पर्धी दौड़ में 23.65 सेकेंड के समय के साथ 2 जुलाई को पोलैंड में पोजनान एथलेटिक्स ग्रां प्री में स्वर्ण पदक जीता था। उन्होंने 7 जुलाई को पोलैंड में ही कुत्नो एथलेटिक्स प्रतियोगिता में 23.97 सेकेंड के साथ 200 मीटर में स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद चेक गणराज्य में 13 जुलाई को क्लादनो एथलेटिक्स प्रतियोगिता में हिमा ने 23.43 सेकेंड से स्वर्ण पदक जीता जबकि 17 जुलाई को उन्होंने इसी देश में ताबोर एथलेटिक्स प्रतियोगिता में चौथा सोने का तमगा जीता। चेक गणराज्य के नोवे मेस्तो में 400 मीटर दौड़ में 52.9 सेकेंड के सत्र के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के साथ हिमा ने महीने का 5वां स्वर्ण स्वर्ण पदक जीता लेकिन यह 50.79 के उनके निजी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से काफी धीमा है जो उन्होंने जकार्ता एशियाई खेलों के दौरान बनाया था। वह साथ ही 51.80 सेकेंड के विश्व चैंपियनशिप के क्वालीफाइंग स्तर से भी चूक गई।
दिग्गज खेल पत्रकार और कई ओलम्पिक कवर कर चुके केपी मोहन ने कहा कि हिमा के प्रदर्शन को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया और अगर उसके समय पर गौर किया जाए तो उसकी उपलब्धि कुछ खास नहीं है। मोहन ने कहा, ‘आप पोलैंड और चेक गणराज्य जैसी जगहों पर छोटी-मोटी चैंपियनशिप में खेलकर सुधार नहीं कर सकते।’ उन्होंने कहा, ‘यह तो अखबारों और सोशल मीडिया में हौव्वा बनाया गया है कि उसने 5 पदक जीते हैं। उसने अधिकांश भारतीयों को ही हराया है। वहां का स्तर भारत की प्रतियोगिताओं के स्तर के जितना ही था। सोशल मीडिया पर अतिरंजित प्रतिक्रिया ने तिल का ताड़ बना दिया।’
उसे पदक नहीं, समय कम करने पर देना होगा ध्यान : नचप्पा
बीजिंग एशियाई खेल 1990 की रजत पदक विजेता अश्विनी नचप्पा ने भी केपी मोहन के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि हिमा ने जिन टूर्नामेंटों में स्वर्ण पदक जीता वे सिर्फ आत्मविश्वास बढ़ाने के लिहाज से ही महत्वपूर्ण हो सकते हैं और अगर प्रदर्शन में सुधार करना है तो पदक नहीं समय कम करने पर ध्यान देना होगा। अर्जुन पुरस्कार विजेता अश्विनी ने कहा, ‘मेरी नजर में प्रतियोगिता के स्तर को देखा जाना चाहिए। आप कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले सकते हैं और कई पदक जीत सकते हैं। इससे आपका आत्मविश्वास तो बढ़ता है लेकिन मुझे लगता है कि प्रदर्शन में सुधार के लिए हिमा दास को खुद के लिए मजबूत चुनौती पेश करनी होगी।’
रोम में 1987 और तोक्यो में 1991 विश्व चैंपियनशिप में भारतीय टीम का हिस्सा रही अश्विनी ने कहा, ‘उसे बेहतर प्रतिस्पर्धी प्रतियोगिताओं की जरूरत है और उससे ही उसके प्रदर्शन में सुधार होगा। उसने पांच स्वर्ण पदक जीते जो अच्छा है लेकिन अगले पांच टूर्नामेंट में अगर वह पदक नहीं भी जीतती है और अपने समय में सुधार करती है तो वह बेहतर होगा।’’