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धोनी ने पेश की एक नजीर
पिछले कुछ अरसे से संन्यास की खबरों के बीच क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के बारे में नई सूचना यह है कि टीम इंडिया का यह पूर्व कप्तान सेना में ऑनरेरी लेफ्टिनेंट कर्नल 31 जुलाई से 15 अगस्त तक कश्मीर में रहेगा। धोनी इस दौरान वहां पेट्रोलिंग, गार्ड और पोस्ट की ड्यूटी करेंगे। इस अवधि में उन्हें फौज के कामकाज के बारे में सिखाया-बताया जाएगा और दुश्मन पर फायरिंग कैसे की जाए, इसकी ट्रेनिंग दी जाएगी। धोनी का सेना के प्रति लगाव छिपा नहीं है। बीते कई वर्षों में फौजी वेशभूषा में उनकी तस्वीरें मीडिया में छाई रही हैं। खिलाड़ी और क्रिकेट प्रेमी ही नहीं, देश से लगाव रखने वाला और किसी प्रेरणा की तलाश में रहने वाला हर शख्स धोनी के सेना-प्रेम से अभिभूत रहा है और इससे जुड़ी किसी भी नई सूचना पर धोनी की सराहना करने वालों का तांता लगता रहा है। पर सवाल है कि क्या धोनी की यह पहल हमारे नौजवानों को सच में ऐसी कोई प्रेरणा देगा कि चाहे वे किसी भी पेशे में हों, अपनी जिंदगी के कुछ दिन सैनिक के रूप में बिताएं। एक सैनिक कैसे देशसेवा करता है, उसे कितने कठिन हालात का सामना करना पड़ता है, कम पैसे में गुजारा करना पड़ता है और फिर भी मौका पड़ने पर वह देश पर जान न्योछावर करने में पीछे नहीं रहता है। हमारे देश, समाज और सरकार को इसका अहसास है कि बेहद कठिन पेशा माने जाने वाली फौज की नौकरी में कोई शख्स या तो देशप्रेम के अपने जज्बे के चलते जाता है या फिर किसी मजबूरी में। ज्यादातर मामलों में तो गरीबी, बेरोजगारी जैसी मजबूरी ही नौजवानों को फौज में ले गई है, अन्यथा रुपये-पैसे के मामले में सेना की नौकरी का कोई विशेष आकर्षण हमारी नौजवान पीढ़ी में नहीं बचा है। इस पर भी जब आक्रांत पड़ोसी मुल्कों की सरहदों पर किसी भी वक्त जान जाने का जोखिम हो तो कई मां-बाप खुद नहीं चाहते कि उनके बच्चे फौज में जाएं। इन्हीं बातों का नतीजा है कि सेना में 70 हजार से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। पिछले साल 2018 में यह जानकारी संसद में रक्षा मामलों पर बनी स्टैंडिंग समिति ने एक रिपोर्ट में दी थी, जिसमें इन खाली पदों की सूचना के साथ सुझाव दिया गया था कि सरकारी कर्मचारियों के लिए 5 साल सेना में बिताना अनिवार्य कर दिया जाए। या शर्त यह हो कि जो अपनी जिंदगी के 5 साल सेना को दे सकते हैं, सिर्फ उन्हें ही सरकारी नौकरी पाने का हकदार माना जाए। बीजेपी के वरिष्ठ सांसद और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मेजर बीसी खंडूरी की अध्यक्षता वाली इस समिति का कहना था कि सिर्फ केंद्र नहीं, बल्कि राज्य सरकार की नौकरियों में भी सेना की पांच साल अनिवार्य ट्रेनिंग और सर्विस का कायदा बनाया जाए। समिति ने इस शर्त को तत्काल लागू करने का सुझाव डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) को एक प्रस्ताव बनाने के संबंध में दिया था, लेकिन डीओपीटी ने वांछित प्रस्ताव बनाकर ही नहीं दिया। मालूम हो कि दुनिया के कई देशों में जैसे कि संयुक्त अरब अमीरात और कुवैत में सैन्य सेवा अनिवार्य है। वर्ष 2015 से ही एक ड्राफ्ट बनाकर वहां अनिवार्य सैन्य भर्ती शुरू की जा चुकी है। इसके पीछे एक वजह यह है कि संयुक्त अरब अमीरात, अरब देशों में बढ़ती तनातनी को देखते हुए अपने सुरक्षा इंतज़ाम बेहतर करना चाहता है। पर इसका दूसरा मकसद ज्यादा बड़ा है। असल में यूएई अपने देश के युवाओं में देशप्रेम का भाव भरना चाहता है। संयुक्त अरब अमीरात में एक और नियम भी है। इसके मुताबिक सेना से बाहर कोई भी नौकरी कर रहे शख्स को देश की जरूरत के अनुसार सेना की ड्यूटी के लिए बुलाया जाता है तो आना ही पड़ेगा। ऐसे मामलों में उस व्यक्ति की जगह किसी और को नहीं भेजा जा सकता, चाहे वह कितना ही अमीर ही क्यों न हो। कई और देश हैं जहां अनिवार्य सैन्य सेवा का कायदा है। फ्रांस में नेशनल सर्विस के तहत 3 महीने के लिए रक्षा-सुरक्षा से जुड़े क्षेत्रों की ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि युवा अनुशासन और समाज के लिए कुछ काम करने को प्रेरित हो सकें। इस्राइल में पुरुषों के लिए तीन और महिलाओं के लिए 2 वर्ष की सैन्य सेवा अनिवार्य है। तुर्की, ग्रीस (यूनान), साइप्रस, ईरान, क्यूबा जैसे कई और देश युवाओं को अनिवार्य मिलिट्री ट्रेनिंग देते हैं। ऐसी ट्रेनिंग का मकसद सिर्फ सैन्य जरूरतों को पूरा करना नहीं है, बल्कि माना जा रहा है कि हमारे देश में जिस तरह से युवाओं में हिंसक प्रवृत्ति बढ़ रही है, उसका भी हल यही है। यह ट्रेनिंग युवाओं को अनुशासन और नियमों का पालन करना सिखा सकती है। ध्यान रहे कि अनुशासन के अभाव में हमारे युवा बेहद कम उम्र में ही नियम तोड़ना सीख रहे हैं। नशे में ड्राइविंग करना, सड़कों पर हिंसा या तेज रफ्तार का आनंद लेने के चक्कर में जान गंवा देना आदि युवाओं में अनुशासनहीनता के उदाहरण हैं। अगर सैन्य सेवा को हरेक के लिए जरूरी कर दिया जाए तो हो सकता है कि समाज में अपराधों की संख्या भी काबू में आ जाए।