भारोत्तोलन ऐसा खेल है जिसमें न तो रोमांच है और न ही पैसा। इससे जुड़े खिलाड़ी शोहरत के मामले में भी दूसरे खेलों के खिलाड़ियों के सामने कहीं नहीं टिकते। यह तो गनीमत है कि यह खेल सरकारी उपेक्षा से बचा हुआ है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर हासिल उपलब्धियों को बाकायदा सरकारी मान्यता मिल रही है तो खिलाड़ियों को भी उपेक्षा का दंश नहीं झेलना पड़ता। पिछले कुछ वर्षों में पुरुषों की तुलना में भारतीय महिलाओं ने इस खेल में ज्यादा नाम कमाया है। हालांकि इस खेल को डोपिंग का भूत हमेशा डराता रहता है।
कर्णम मल्लेश्वरी ने सिडनी ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतकर 48 साल से ओलम्पिक में चले आ रहे पदकों के अकाल को समाप्त किया था। मल्लेश्वरी की इस सफलता ने उन्हें मालामाल कर दिया। मल्लेश्वरी के अलावा भी एक फौलादी महिला ऐसी है जिसने बेशक ओलम्पिक में कोई पदक न जीता हो लेकिन वह हर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में देश के लिए पदक आस के रूप में उतरती रही है। दो दशक के अपने वेटलिफ्टिंग करियर में इस महिला भारोत्तोलक ने ढेरों पदक जीतकर मुल्क का गौरव बढ़ाया है। यह आयरन लेडी कोई और नहीं मणिपुर की नामीराक्पम कुंजारानी देवी हैं। एन. कुंजारानी 1990 में अर्जुन पुरस्कार प्राप्त करने वाली देश की पहली महिला भारोत्तोलक बनीं तो कुंजा को 1996 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार पाने वाली देश की पहली महिला खिलाड़ी होने का गौरव भी मिला। खेलों में शानदार प्रदर्शन के लिए कुंजारानी को 1996 में ही के.के. बिरला खेल अवार्ड से भी नवाजा गया। 2011 में कुंजारानी को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के हाथों पद्मश्री अवार्ड भी प्रदान किया गया।