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अदालत ने खेल महासंघों में आपसी कलह पर जताई चिन्ता
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को भारत में खेल महासंघों के भीतर चल रही आपसी कलह और विवादों पर चिन्ता व्यक्त की। अदालत ने कहा कि ऐसे मतभेद खेलों के माहौल के लिए हानिकारक हैं। यह टिप्पणी मुक्केबाज़ी महासंघ के चुनाव प्रक्रिया से जुड़ी अपील की सुनवाई के दौरान की गई, जिसमें मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ सुनवाई कर रही थी।
कोर्ट ने कहा कि खेल महासंघों में फैला हुआ मुकदमेबाज़ी का माहौल और आंतरिक झगड़े उनकी स्वायत्तता को खतरे में डाल सकते हैं और अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक चार्टर के उस सिद्धांत के विरुद्ध हैं, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय खेल संस्थाओं को स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहिए। पीठ ने कहा, “हर खेल महासंघ में कोई न कोई विवाद है। आपका कार्य पूरे देश को प्रभावित करता है। यह आपसी लड़ाई क्यों? ऐसे विवादों के कारण अंतरराष्ट्रीय संस्था आपको अयोग्य भी घोषित कर सकती है।”
विवाद की शुरुआत 19 मार्च को एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश से हुई थी, जिसमें बीएफआई के उस निर्णय पर रोक लगा दी गई थी, जिसमें आगामी चुनाव में केवल संबद्ध राज्य इकाइयों के निर्वाचित सदस्यों को ही प्रतिनिधित्व देने की बात कही गई थी। यह आदेश दिल्ली एमेच्योर बॉक्सिंग एसोसिएशन की याचिका पर दिया गया था, जिसने 7 मार्च के सर्कुलर के आधार पर अपने दो नामांकनों को “अयोग्य” घोषित किए जाने को चुनौती दी थी।
सुनवाई के दौरान बीएफआई की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि एकल न्यायाधीश का आदेश व्यावहारिक समस्याएं पैदा कर रहा है और चुनाव प्रक्रिया पहले ही काफी आगे बढ़ चुकी है। अपील में कहा गया कि यह आदेश “लागू करने योग्य नहीं” है क्योंकि इससे वह पक्ष, जो मुकदमे में पक्षकार नहीं है, भी चुनाव में हिस्सा ले सकता है, जिससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित होगी।
पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि भारत के लगभग हर खेल महासंघ में किसी न किसी प्रकार की कानूनी लड़ाई चल रही है, जो चिंता का विषय है। कोर्ट ने सभी पक्षों को आपसी विवाद सुलझाने की कड़ी सलाह दी। और चेतावनी दी कि यदि कलह नहीं रुकी, तो वह सख्त कदम उठा सकती है। “अगर यह झगड़ा नहीं रुका, तो हमें पता है क्या करना है। कृपया रुक जाइए। खेलों के हित में हमें मालूम है क्या करना है।”
इस मामले की अगली सुनवाई सात अप्रैल को होगी, ताकि पक्षकारों को आपसी समझौते या कोर्ट द्वारा आगे की कार्रवाई पर विचार करने का समय मिल सके। यह मामला न केवल भारत में खेल प्रशासन की जटिलताओं को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि किस प्रकार आंतरिक राजनीति, खेल की साख और उपलब्धियों को प्रभावित कर रही है।