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उत्तराखंड में बिहार को मिले 12 पदक और 29वां स्थान खेलपथ संवाद पटना। उत्तराखंड में हुए 38वें राष्ट्रीय खेलों में बिहार ने न सिर्फ पदक जीते बल्कि यहां के लोगों के दिलों में खेलों के प्रति एक नई उम्मीद पैदा की है। बिहार के खिलाड़ियों ने नेशनल गेम्स में कुल 12 पदक जीते जिसमें एक स्वर्ण, 6 रजत और 5 कांस्य पदक शामिल हैं। पदक तालिका में 29वें स्थान पर रहे बिहार के लिए उत्तराखंड का प्रदर्शन राज्य के खेल इतिहास की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। अंशिका कुमारी ने ओलंपियन को दी टक्कर: जब संसाधनों की कमी हो, तो जुनून और जज्बा ही सबसे बड़ा हथियार बन जाता है. तीरंदाजी में रजत जीतने वाली अंशिका कुमारी ने साबित किया कि बिहार की मिट्टी में भी चैम्पियन पैदा होते हैं. जब उन्होंने ओलंपियन दीपिका कुमारी जैसी दिग्गज के सामने अपने तीर संभाले, जो नई पीढ़ी के लिए एक संदेश था। आकाश की तलवार से कांस्य की चमक: फेंसिंग में बिहार के पहले पदक का सफर आसान नहीं था. आकाश ने जब अपनी तलवार से वो पल काटा, तो यह उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया जो सोचते हैं कि "बिहार से कुछ नहीं हो सकता". उनकी चमकती तलवार ने अंधेरे में एक रोशनी जलाई। बिहार की बेटियों ने लहराया परचम: 25 साल बाद बिहार को किसी राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने का गौरव हासिल हुआ है. बिहार की उपलब्धि से बिहार के तमाम खिलाड़ी और खेल से जुड़े लोग काफी उत्साहित हैं। महिला लॉन बॉल्स टीम का स्वर्ण पदक जीतना सिर्फ एक मेडल ही नहीं, बल्कि उन सभी लड़कियों का सपना साकार करने का हौसला बना जो बिहार की गलियों से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाना चाहती हैं। महिला रग्बी टीम ने दिखाया जलवा: बिहार के खेल इतिहास का यह अध्याय सिर्फ एक शुरुआत है. जब महिला रग्बी टीम ने ओडिशा के सामने डटकर रजत जीता, तो उनकी आंखों में एक ही सपना था "अगली बार, स्वर्ण हमारा होगा". यही विश्वास अब बिहार की हर गली, हर मैदान और हर युवा के दिल में धड़क रहा है। 25 साल बाद स्वर्ण का सूखा समाप्त: बिहार राज्य खेल प्राधिकरण के महानिदेशक रवीन्द्रण शंकरण का कहना है कि यह तो अभी शुरुआत है, यह अभी सफर का पहला पड़ाव है. 25 साल बाद मिला स्वर्ण साबित करता है कि बिहार अब पीछे नहीं, आगे देख रहा है. उन्होंने कहा कि यह सफलता सिर्फ खिलाड़ियों की नहीं, बल्कि उन माता-पिता की भी है जिन्होंने अपने बच्चों के सपनों को पंख दिया. उन कोचों की भी है जिन्होंने हर रात सोचा "कल मेरा खिलाड़ी चमकेगा". खेल में बदली बिहार की पहचान: रवीन्द्रण शंकरण ने बताया कि यह शानदार सफलता न केवल बिहार के पिछले प्रदर्शन को पीछे छोड़ती है, बल्कि राष्ट्रीय खेल मंच पर राज्य की बढ़ती प्रमुखता को भी दर्शाती है. इस उपलब्धि के पीछे बिहार के नेतृत्व की संगठित रणनीति है, जो राज्य के खेल जगत को बदलने के लिए लगातार प्रयासरत है. नेशनल गेम्स में बिहार की सुधरी हुई रैंकिंग उन रणनीतिक नीतियों, खिलाड़ी- केंद्रित प्रशिक्षण कार्यक्रमों और आधारभूत खेल संरचना में सुधार का प्रमाण है, जिसे हाल के वर्षों में लागू किया गया है. खिलाड़ियों ने किया शानदार प्रदर्शन: रवीन्द्रण शंकरण ने कहा कि IOA और एड-हॉक समिति का भी आभार जताया है. जिनके सहयोग से खिलाड़ियों के सर्वोत्तम प्रदर्शन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक लॉजिस्टिक और मेडिकल सहायता उपलब्ध कराई गई। बीएसएसए के कोच और सहयोगी स्टाफ की उपस्थिति ने खिलाड़ियों को और अधिक प्रेरित किया जिससे खिलाड़ियों ने पूरे आत्मविश्वास के साथ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया।