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अर्जुन अवॉर्ड पाने वाली खो खो की पहली महिला खिलाड़ी खेलपथ संवाद नई दिल्ली। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी नहीं मानी हार, बड़ी बहन ने दिया साथ तो खो खो वर्ल्ड कप जीतकर रचा इतिहास। समय भी क्या क्या गुल खिलाता है। आज नसरीन विश्व चैम्पियन है। एक वो समय था जब नई दिल्ली की लोकल मार्केट में उनके पिता सड़क किनारे छोटी सी दुकान लगाकर बर्तन बेचते थे। किसी ने नहीं सोचा होगा कि एक गरीब परिवार यह बेटी एक दिन दुनिया में नाम करेगी। 6 बहनों और 5 भाइयों में से एक, नसरीन को उनकी बड़ी ने देश के लिए खेलने के लिए प्रेरित किया। उनकी बहन खुद भी खो खो खेलती थीं, लेकिन उस समय परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब होने की वजह से ना उन्हें सपोर्ट मिला, और ना आगे बढ़ने का रास्ता। इसलिए उनका भारत के लिए खेलने का सपना अधूरा रह गया। जब छोटी बहन ने भी वही रास्ता अपनाया, तब बड़ी बहन ने जी-जान से उसका साथ दिया, ताकि वह उस सपने को पूरा कर सके। “मैं उस वक्त बहुत छोटी थी जब दीदी खेलती थीं। उन्हें नेशनल्स खेलने जाने को नहीं मिला। इसलिए उन्होंने मुझे आगे बढ़ाया और देश के लिए खेलने, और गोल्ड मेडल जीतने का प्रोत्साहन दिया।" नसरीन ना केवल भारतीय टीम का हिस्सा बनीं, बल्कि अपनी प्रतिभा से टीम को कई बार जीत दिलाई। अपनी बहन का सपना पूरा करते हुए आज उन्होंने विश्व कप हासिल कर दिखाया है। खेल में उनके अहम योगदान को देखते हुए, पिछले साल उन्हें प्रतिष्ठित अर्जुन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया। नसरीन बताती हैं, "लड़की होने की वजह से मुझे लोगों की कई बातें सुननी पड़ती थीं। मैंने बहुत पहले ही जान लिया था कि अगर मुझे खेल जारी रखना है और अपने लक्ष्य को पाना है, तो उन बातों को नजरअंदाज करना होगा।" तीसरी कक्षा से शुरू हुआ उनका खो खो का सफ़र, आज विश्व स्तर तक पहुंच चुका है, और यह सब उनकी मेहनत, जज़्बे और मुश्किल हालातों में भी बिना रुके, आगे बढ़ते रहने का नतीजा है।