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श्रवण कुमार बाजपेयी जब से टी-20 का जमाना आया है, खेल और खिलाड़ियों का नजरिया बदल गया है। खिलाड़ी इतने उतावले होते जा रहे हैं कि उनमें स्थिरता और रुकावट का अभाव देखा जा रहा है। बल्लेबाजों के मन-मस्तिष्क में शीघ्रता का जो नशा छाता चला जा रहा है उसी का दुष्परिणाम है कि टेस्ट क्रिकेट की चमक धूमिल होती जा रही है।टेस्ट क्रिकेट ही असल क्रिकेट है जिसमें दिल, दिमाग, ठहराव और स्थिरता काम आती है लेकिन टी-20 के चलते मूल क्रिकेट मृतप्राय हो चुकी है। आज पांच दिवसीय मैचों का हाल यह है कि 70 फीसदी मैच पांचवां दिन भी नहीं देख पाते। 20 फीसदी का हाल ये है कि तीसरे दिन ही चारों पारियां खत्म हो जाती हैं। इसके लिए सिर्फ खिलाड़ी ही दोषी नहीं है, दर्शक भी कहीं न कहीं कसूरवार है। टेस्ट मैचों में दर्शकों की अल्प उपस्थिति उबाऊ नीति का ही समर्थन करती है। अब हम बात करते हैं भारतीय टीम की जो पिछले साल से इस प्रारूप में पूर्णतया अप्रभावी होती दिख रही है। हां निचले क्रम के खिलाड़ी जरूर लाज बचाए हुए हैं। कई सम्भावित पराजय की तरफ जाते मुकाबले या तो सातवें नम्बर या बाद के खिलाड़ियों ने डॉ कराए या जिताए हैं। भारतीय टेस्ट क्रिकेट की इस फजीहत पर नजर डालें तो उच्च स्तरीय खिलाड़ी पूर्णतया नाकामी का चोला पहने नजर आए हैं। खासकर रोहित शर्मा और विराट कोहली इसके उदाहरण हैं। यशस्वी जायसवाल, ऋषभ पंत, रविन्द्र जडेजा कुछ हद तक स्थिति को संभाले हुए हैं लेकिन पांच दिन तक लंगर डाले रहना इनके बस में भी नहीं है। टेस्ट क्रिकेट में रन आउट मृत्यु के समान है। असफल खिलाड़ियों को बार-बार मौका देना चयन समिति की मजबूरी या फिर खिलाड़ियों के प्रभाव को मान सकते हैं। टी-20 को देखते हुए अधिकांश देशों ने इसकी अलग टीम बनाई है। भारत भी ऐसा कर रहा है लेकिन बीसीसीआई कई खिलाड़ियों के प्रभाव से डरी सहमी होती है। कई टेस्ट खिलाड़ी अपने पुराने प्रदर्शन से टीम में टिके रहते हैं तथा अपने खराब प्रदर्शन से देश की छवि को बट्टा लगाते रहते हैं। नीतीश कुमार रेड्डी और वाशिंगटन सुंदर जैसे कुछ नाम हैं जो भारत का भविष्य हैं। वॉशिंगटन सुंदर अपनी फिटनेस की वजह से नियमित खेल में नजर नहीं आते। यह सिर्फ भारत की ही स्थिति नहीं है सभी देश इसी बात का शिकार हैं। कभी कभी जीते मैच हार जाते हैं सिर्फ टिककर न खेलने की वजह से। बहुत से मैच इस लिए ड्रा नहीं करा पाते कि सिर्फ तीसरा सत्र पार करना होता है। बात खिलाड़ियों की करें टेस्ट मैच खेलने वाले भी कम नहीं हैं बस उन्हें परखने वालों की कमी है। किस खिलाड़ी का किस जगह उपयोग करना चाहिए, यह भी एक बड़ा प्रश्न है। नामचीन खिलाड़ियों को सिर्फ उनके पुराने रिकॉर्ड की वजह से बार-बार मौका देना, मेरी नजर में गलत है। यह नए खिलाड़ियों की राह में अवरोध है। चयन समिति चयन के समय खिलाड़ी की फिटनेस तथा उसके प्रदर्शन को देखकर निर्णय ले वरना टीम इंडिया को सिर्फ पराजय हाथ लगेगी।