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रजनीकांत ने बेटे के लिए नौकरी छोड़ी, मां ने संभाला घर खेलपथ संवाद नई दिल्ली। चीन के डिंग लिरेन को हराकर सबसे कम उम्र में विश्व शतरंज चैम्पियन बनने का गौरव हासिल करने वाले डी गुकेश को ऐसे माता-पिता ने पाला पोसा है जिन्होंने उनके लिए अपने करियर को ब्रेक दिया और उनके सपनों के लिए ‘क्राउड-फंडिंग’ से मदद लेने में संकोच नहीं किया। गुकेश ने सात साल की उम्र में अपनी नियति का सपना देखा और एक दशक से भी कम समय में इसे हकीकत में बदल दिया। यह 18 वर्षीय खिलाड़ी लिरेन को हराकर सबसे कम उम्र का विश्व शतरंज चैम्पियन बना। इस शानदार वर्ष में उन्होंने जहां भी प्रतिस्पर्धा की, वहां शायद ही कोई गलती की हो। हालांकि, गुकेश के शीर्ष पर पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा और इसमें न केवल उन्हें बल्कि उनके माता-पिता को भी त्याग करना पड़ा। गुकेश के पिता रजनीकांत एक ईएनटी सर्जन हैं, जबकि मां पद्मा एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट हैं। रजनीकांत को 2017-18 में अपनी मेडिकल प्रैक्टिस रोकनी पड़ी थी। उन्होंने काम को त्याग कर बेटे पर पूरा ध्यान दिया। पिता-पुत्र की जोड़ी ने सीमित बजट में दुनिया भर की यात्रा की ताकि गुकेश को जरूर एक्सपोजर मिल सके। जब गुकेश अंतिम जीएम नॉर्म हासिल करने की केाशिश में जुटे थे तो उनकी मां घर के खर्चों का ख्याल रखते हुए कमाने वाली सदस्य बन गईं। गुकेश जब 17 साल की उम्र में विश्व खिताब के लिए सबसे कम उम्र के दावेदार बन गए, तब उनके बचपन के कोच विष्णु प्रसन्ना ने कहा था, 'उनके माता-पिता ने बहुत त्याग किया है। उनके पिता ने अपना करियर लगभग छोड़ दिया है। उनकी मां परिवार का खर्च उठा रही हैं, जबकि उनके पिता यात्रा कर रहे हैं और वे शायद ही कभी एक-दूसरे को देख पाते हैं।' गुकेश शतरंज के इतिहास में तीसरे सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर बन गए। उन्होंने 12 साल सात महीने और 17 दिन की उम्र में यह उपलब्धि हासिल की। चेन्नई के गुकेश एलीट 2700 ईएलओ रेटिंग क्लब में प्रवेश करने वाला तीसरा सबसे कम उम्र के खिलाड़ी हैं और 2750 रेटिंग को छूने वाला सबसे कम उम्र के खिलाड़ी हैं। वर्ष 2024 गुकेश के करियर का सबसे बेहतरीन वर्ष होने में कोई संदेह नहीं है। उन्होंने कैंडिडेट्स टूर्नामेंट जीता, बुडापेस्ट में हाल ही में हुए शतरंज ओलंपियाड में टीम इंडिया को स्वर्ण पदक दिलाने के लिए शीर्ष बोर्ड पर अपना दबदबा बनाए रखा और गुरुवार को सिंगापुर में विश्व खिताब जीतना उनके लिए सबसे बड़ी उपलब्धि थी। गुकेश की शतरंज यात्रा 2013 में एक घंटे और सप्ताह में तीन बार के सबक से शुरू हुई, जिस वर्ष विश्वनाथन आनंद ने अपना विश्व खिताब नॉर्वे के दिग्गज मैग्नस कार्लसन से गंवा दिया था। कई दफा आयु वर्ग की चैंपियनशिप जीतने वाले गुकेश 2017 में फ्रांस में एक टूर्नामेंट के बाद अंतरराष्ट्रीय मास्टर बन गए। युवा चैंपियन की शुरुआती सफलता में अंडर-9 एशियाई स्कूल चैंपियनशिप और 2018 में अंडर 12 वर्ग में विश्व युवा शतरंज चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतना शामिल है। गुकेश के शतरंज के प्रति जुनून ने उनके माता-पिता को उन्हें कक्षा चार के बाद पूर्णकालिक स्कूल जाने से रोकने पर मजबूर कर दिया। 2019 में नई दिल्ली में एक टूर्नामेंट के दौरान गुकेश इतिहास में दूसरे सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर बने, एक ऐसा रिकॉर्ड जिसे तब केवल रूस के सर्गेई कारजाकिन ने तोड़ा था, लेकिन बाद में अमेरिका के भारतीय मूल के प्रतिभावान अभिमन्यु मिश्रा ने भी इसे तोड़ दिया। 2022 में गुकेश ने भारतीय टीम के लिए शीर्ष बोर्ड पर खेलते हुए व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता और बुडापेस्ट में फिर से दोहराया। सितंबर 2022 में वह पहली बार 2700 से अधिक की रेटिंग पर पहुंचे और एक महीने बाद वह उस समय के विश्व चैंपियन मैग्नस कार्लसन को हराने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी भी बन गए। अगला साल भी उनके लिए अच्छा रहा क्योंकि उन्होंने 2750 रेटिंग की बाधा को पार कर लिया और एकमात्र निराशाजनक क्षण तब था जब वह विश्व कप के क्वार्टर फाइनल में बाहर हो गए और विश्व चैंपियनशिप का रास्ता बंद हो गया। हालांकि, पिछले साल दिसंबर में गुकेश को एक और मौका मिला क्योंकि तमिलनाडु सरकार ने एक बंद टूर्नामेंट आयोजित किया जिसमें गुकेश को एक और मौका मिला जिसमें जीत का मतलब था कैंडिडेट्स के लिए टोरंटो का टिकट। इस जीत ने उन्हें बॉबी फिशर और मैग्नस कार्लसन के बाद कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई करने वाला तीसरा सबसे कम उम्र के खिलाड़ी भी बना दिया। इस सब के बीच गुकेश के पास कोई प्रायोजक नहीं था। उन्हें पुरस्कार राशि और माता-पिता की ‘क्राउड-फंडिंग’ के माध्यम से अपने वित्त का प्रबंधन करना पड़ा। कई चुनौतियों के बावजूद वह पिछले साल भारत के नंबर एक खिलाड़ी के रूप में अपने आदर्श आनंद से आगे निकल गए। यह भाग्य का खेल था कि आनंद ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने वेस्टब्रिज-आनंद शतरंज अकादमी (वाका) में उन्हें निखारा जो 2020 में काोविड-19 महामारी के चरम के दौरान अस्तित्व में आई जिसने अधिकांश खेल गतिविधियों को रोक दिया था।