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आईआईटी एंट्रेंस छोड़ दिया यूथ नेशनल गेम्स का ट्रायल खेलपथ संवाद पंचकूला। खेलोगे-कूदोगे होगे खराब, पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, अब यह कहावत बिल्कुल बदल चुकी है क्योंकि अब नई कहावत ये है कि खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे लाजवाब। इस नई कहावत को हरियाणा के जींद की बेटी रवीना ने सिद्ध कर दिखाया है। रवीना ने पढ़ाई के साथ खेलों को भी खूब तवज्जो दी और बेटी ने खेलों में बड़ी उपलब्धि हासिल कर माता-पिता के साथ शहर और राज्य का भी नाम रोशन किया है। रवीना ने 63वें नेशनल इंटर स्टेट सीनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 20 किलोमीटर वॉक में स्वर्ण पदक जीता है। रवीना के पिता जींद आईटीआई कॉलेज में शिक्षक थे और वे चाहते थे कि बेटी भी पढ़-लिखकर इंजीनियर, डॉक्टर या शिक्षक बने। लेकिन रवीना का मन पढ़ाई से ज्यादा खेलों में लगता था। घरवाले कहते थे कि पढ़ाई को करिअर बनाना है और खेल को शौक के तौर पर खेलना है। लेकिन, रवीना ने खेल को करिअर बनाया और एक के बाद एक पदक जीते। रवीना ने बताया कि मम्मी ने पापा से कहा था कि इसे खेलना पसंद है तो खेलने दो खेल के साथ-साथ पढ़ाई कर लेगी लेकिन घरवालों की नजर में पढ़ना जरूरी था, खेलना जरूरी नहीं। भाई ने कहा कि इसे खेलने दो कोई नहीं रोकेगा। घर में सब पढ़े-लिखे हैं और खेल में कोई नहीं था। रवीना ने बताया कि साल यूथ नेशनल गेम्स के ट्रायल और आईआईटी का एंट्रेंस टेस्ट एक ही दिन था। उन्होंने आईआईटी का एंट्रेंस टेस्ट छोड़ दिया था और यूथ नेशनल गेम्स के ट्रायल दिए। इस बात से पापा बहुत गुस्सा हुए। वहीं से उन्होंने अपना पहला कांस्य पदक जीता। इसके बाद खेलों में कॅरिअर बनाने के लिए पापा मान गए। रवीना ने बताया कि जब वह जींद नवोदय विद्यालय में कक्षा दसवीं में पढ़ती थीं तो वहां उनके कोच बलराज रांगी के पास उन्होंने एथलेटिक्स खेलना शुरू किया। 2014 में पहले यूथ नेशनल गेम्स में हिस्सा लिया। रोहतक की एमडीयू यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने के बाद कोच रमेश सिंधु के पास तीन साल ट्रेनिंग की। 2016 में जूनियर एशिया चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीता। 2018 में एशियन चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता। इसके बाद कई खेल प्रतियोगिता में पदक जीते। साल 2022 में इंजरी की वजह से 2023 में नेशनल इंडिया कैंप से नाम कट गया और आगे खेल नहीं पाई। इंजरी की वजह से मानसिक परेशान हो गई थी। करीब एक साल तक नहीं खेला। रवीना ने बताया कि पदक न आने की वजह से उन्हें रेलवे ने ड्यूटी पर बुला लिया। भाई ने कहा कि तुम अवैतनिक अवकाश पर आ जाओ और अभ्यास करो। मैं तुम्हारी मदद करूंगा। नवोदय विद्यालय के कोच बलराज रांगी आज भी उन्हें सपोर्ट करते हैं। कोच को घुटने में इंजरी आ गई थी इस वजह से उन्हें खेल को छोड़ना पड़ा था। कोच बलराज रांगी जानते थे कि वह खेल में अच्छा प्रदर्शन करती है तो खेले। रवीना ने बताया कि उन्होंने भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) बेंगलूरू के कोच गुरमीत सिंह के साथ कई महीनों तक ट्रेनिंग की उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला।