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इस बार 2019 की अपेक्षा 49616 मत कम मिले
खेलपथ विशेष
नई दिल्ली। देश की सबसे हाई प्रोफाइल लोकसभा सीट वाराणसी से भाजपा प्रत्याशी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लगातार तीसरी बार जीत हासिल की है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी अजय राय को 1,52,513 मतों से पराजित किया। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी की जीत का अंतर 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले काफी कम रहा, वहीं लोकसभा चुनाव 2019 के मुकाबले उन्हें 49616 मत भी कम मिले।
प्रधानमंत्री मोदी की जीत की घोषणा होते ही वाराणसी में जीत का जश्न मनाया गया। इसके पहले पहड़िया स्थित मतगणना स्थल पर कड़ी सुरक्षा के बीच सुबह आठ बजे से शुरू हुई मतगणना में पोस्टल बैलेट की गिनती के शुरुआती रुझान में प्रधानमंत्री आगे रहे, लेकिन पोस्टल बैलेट की गिनती के बाद ईवीएम के वोटों की गिनती के प्रथम चरण में इंडी गठबंधन के प्रत्याशी अजय राय से 6000 से अधिक मतों से पिछड़ गए।
दूसरे राउंड में मोदी ने मामूली अंतर से बढ़त बनाई और यह सिलसिला 30वें राउंड तक चलता रहा। चक्रवार गणना के दौरान इंडी गठबंधन के अजय राय हर राउंड में मजबूती से लड़ते दिखे। यह सिलसिला हर चक्र में बना रहा। 30वें और अन्तिम राउंड में भाजपा के प्रत्याशी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को 612970, इंडी गंठबंधन के अजय राय को 460457 और बसपा के अतहर जमाल लारी को 33766 मत मिले।
गौरतलब है कि वर्ष 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तब भाजपा के प्रत्याशी को कुल 581022 मत और दूसरे स्थान पर रहे आम आदमी पार्टी के अरविन्द केजरीवाल को 209238 मत मिले थे। चुनाव में कांग्रेस के अजय राय को 75614,बसपा के सीए विजय प्रकाश को 60579 तथा सपा के कैलाश चौरसिया को 45291 मत मिले थे।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी को काशी के मतदाताओं ने प्रचंड बहुमत दिया। उन्हें कुल 6,74,664 मत मिले थे। समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी शालिनी यादव दूसरे नम्बर पर रहीं। शालिनी यादव को 1,95,159 वोट मिले थे। शालिनी यादव अब भाजपा में शामिल हो चुकी हैं। 2019 में अजय राय लगातार तीसरी बार तीसरे नम्बर पर रहे और उन्हें 1,52,548 वोट मिले थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दूसरी बार 4,79,505 मतों के अंतर से बड़ी जीत हासिल की थी। तब भी वाराणसी में लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में मतदान हुआ था। तब प्रधानमंत्री मोदी ने 56.37 प्रतिशत मत हासिल किया था।
खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह खडूर साहिब से जीता
बता दें कि इस लोकसभा चुनाव में जेल में बंद दो निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत मिली है। खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह ने खडूर साहिब से चुनाव जीता जबकि शेख अब्दुल राशिद ने बारामूला लोकसभा सीट से जीत हासिल की। दोनों ही नेता आतंकवादी गतिविधियों के आरोप में जेल में बंद हैं। अमृतपाल असम के डिब्रूगढ़ जेल तो शेख अब्दुल राशिद पिछले पांच सालों से तिहाड़ जेल में बंद हैं।
इस बार भाजपा को मिले 69 लाख ज्यादा वोट लेकिन 63 सीटें हुईं कम!
इस साल हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम भारतीय जनता पार्टी को झटका देने वाले रहे हैं। पार्टी के नेशनल वोट शेयर में 0.7 प्रतिशत की गिरावट आई है। इस चुनाव में पार्टी का नेशनल वोट शेयर 36.6 प्रतिशत रहा। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा 37.3 प्रतिशत था। वोट की बात करें तो भाजपा को मिलने वाले मतों की संख्या 2019 के मुकाबले बढ़ी है। पिछले चुनाव में भगवा दल को 22.9 करोड़ वोट मिले थे। इस साल यह आंकड़ा 23.59 करोड़ रहा। इसका मतलब है कि इस आम चुनाव में भाजपा को पिछले चुनाव की तुलना में 68.79 लाख वोट ज्यादा मिले।
पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार करीब 70 लाख वोट ज्यादा पाने के बाद भी भाजपा के हाथ से 63 सीटें निकल गईं। 2019 में भाजपा ने जहां 303 सीटें जीती थीं वहीं, इस बार यह संख्या 240 ही रह गई है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि किस तरह वोट शेयर में आई महज 0.7 प्रतिशत की गिरावट ने भाजपा के लिए सीट शेयरिंग में 11 प्रतिशत की कमी कर दी। इस सवाल का जवाब आपको हम बताने जा रहा हैं और यह जवाब है फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट चुनावी व्यवस्था जिसका भारत में पालन किया जाता है। भारत में इस व्यवस्था को अंग्रेजों से एडॉप्ट किया गया था। भारत के अलावा कई अन्य देशों में भी इसी व्यवस्था के तहत चुनाव होते हैं।
क्या होता है एफपीटीपी सिस्टम?
एफपीटीपी सिस्टम के तहत देश को विभिन्न संसदीय क्षेत्रों में बांटा जाता है। हर क्षेत्र से चयनित प्रतिनिधि संसद जाता है। जिस व्यक्ति को क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं उसे सीट का विजेता घोषित किया जाता है, इसमें इस बात से कोई मतलब नहीं पड़ता कि उस व्यक्ति को बहुमत मिला है या नहीं। उल्लेखनीय है कि यह व्यवस्था आसान और बिल्कुल सीधी है लेकिन इसकी वजह से किसी पार्टी को मिले वोट के प्रतिशत और इसकी जीती सीटों की संख्या में कई बड़े व्यवधान आ सकते हैं। इस सिस्टम में जीत या हार इस बात पर निर्भर करती है कि किस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिले हैं। आइए इस चुनावी व्यवस्था को एक उदाहरण से समझते हैं।
मान लीजिए किसी संसदीय क्षेत्र में 100 मतदाता हैं और 3 उम्मीदवार हैं। उदाहरण के तौर पर अगर पहले कैंडिडेट को 36, दूसरे को 35 और तीसरे को 29 वोट मिलते हैं। इस स्थिति में किसी भी प्रत्याशी के पास बहुमत नहीं है। लेकिन, पहले कैंडिडेट को विजेता घोषित किया जाएगा क्योंकि उसे सबसे ज्यादा वोट मिले हैं। ऐसे में यह स्थिति बनती है कि केवल 36 प्रतिशत लोगों का समर्थन पाने वाला उम्मीदवार उस क्षेत्र के 100 प्रतिशत लोगों का प्रतिनिधि बन जाता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसे कितने वोट मिले हैं अगर उस व्यक्ति को मिलने वाले वोटों की संख्या उस संसदीय क्षेत्र में चुनाव लड़ रहे बाकी उम्मीदवारों के मुकाबले ज्यादा है।
जीत के बढ़े अंतर ने कम कीं सीटें!
चुनाव में भाजपा के साथ क्या हुआ यह समझने के लिए जीत के अंतर का फैक्टर समझना होगा जो बहुत अहम होता है। कई संसदीय क्षेत्रों में भाजपा को बड़े अंतर से जीत मिली। मध्य प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन इसे बेहतर तरीके से एक्सप्लेन करता है। इंदौर से शंकर लालवानी ने 11.2 लाख के बहुत बड़े अंतर से जीत हासिल की। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विदिशा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे और 8.21 लाख वोट के अंतर से जीत दर्ज की। सिर्फ इन दोनों सीटों को जोड़ दें तो भाजपा को मिलने वाले मतों की संख्या तो करीब 20 लाख हो गई। इससे भाजपा का वोट शेयर तो बढ़ा लेकिन सीटों की संख्या तो 2 ही रही, बढ़ी नहीं।
वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में मिले 5,81,022 वोट
वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में मिले 6,74,664 वोट
वर्ष 2024 लोकसभा चुनाव में मिले 6,12,970 वोट