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खेलपथ संवाद प्राचीन ओलम्पिया। ‘अपोलो’ (सूर्य देवता) की मदद के बिना ही पेरिस ओलम्पिक में जलने वाली मशाल को दक्षिणी यूनान में प्राचीन खेलों के स्थल पर जलाई गयी। आसमान में बादलों के कारण सूर्य की किरणें नहीं दिखीं और मंगलवार को पारम्परिक तरीके से मशाल नहीं जलायी गई। पारम्परिक तरीके में चांदी की मशाल जलाने के लिए सूरज की किरणों का इस्तेमाल किया जाता है जिसके लिए प्राचीन यूनान की पुजारिन की पोशाक पहने एक युवती हाथ में मशाल लिये रहती है। यूनान के सूर्य देवता ‘अपोलो’ की प्रार्थना के बाद किरणों से लौ जलायी जाती थी। लेकिन इसके बजाय मंगलवार को एक ‘बैकअप’ लौ का उपयोग किया गया था जिसे सोमवार को अंतिम ‘रिहर्सल’ के दौरान उसी स्थान पर जलाया गया था। सामान्यत: चुन्नटवाली लंबी पोशाक पहने पुजारिनों का एक समूह ईंधन से भरी मशाल को एक अवतल दर्पण ‘पैराबोलिक मिरर’ के सामने रखता जिससे सूर्य की किरणें मशाल पर केंद्रित हो जाती और लौ जलने लगती। लेकिन इस बार ऐसी कोशिश ही नहीं की गयी। सीधे ‘बैकअप’ का इस्तेमाल किया गया। विडंबना यह है कि कुछ मिनट बाद ही सूरज भी चमकने लगा। ओलंपिया के प्राचीन स्टेडियम से मशालधारियों की रिले दौड़ इस मशाल को प्राचीन ओलंपिया के खंडहर मंदिरों और खेल मैदानों से 5000 किमी (3100 मील) से ज्यादा की दूरी तक ले जायेगी।