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कभी थे मजदूर, अब बने एशियन गेम्स पदक विजेता सोनभद्र के लाल ने हांगझोऊ में किया कमाल खेलपथ संवाद नई दिल्ली। दिहाड़ी मजदूर के बेटे और एशियाई खेलों की पैदल चाल स्पर्धा के कांस्य पदक विजेता रामबाबू की कहानी बड़ी प्रेरक है। अभी उनके इरादे बुलंद हैं और आसमान छूने का इरादा है। रामबाबू की कहानी बयां करती है कि कैसे मजबूत इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति अपनी किस्मत खुद लिखता है। एशियाई खेलों की 35 किलोमीटर पैदल चाल मिश्रित टीम स्पर्धा में मंजू रानी के साथ कांस्य पदक जीतने वाले रामबाबू ने एथलेटिक्स की ट्रेनिंग का खर्चा उठाने के लिए वेटर का काम किया और कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान मनरेगा योजना के तहत अपने पिता के साथ सड़क निर्माण का कार्य भी किया क्योंकि परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। चौबीस साल के रामबाबू के पिता खेतिहर मजूदर हैं। उनकी तीन बहनें हैं। उनकी मां गृहणी हैं और काम में भी पति का हाथ बंटाती हैं। रामबाबू ने कहा, ‘मैं पढ़ाई में अच्छा नहीं था। खेल में करिअर बनाना चाहता था।’ जवाहर नवोदय विद्यालय में दाखिला भी हो गया, लेकिन पढ़ाई में मन नहीं लगा। उन्होंने कहा, ‘मैं तब सातवीं कक्षा में था और अपने स्कूल के छात्रावास के टेलीविजन पर अनेक खिलाड़ियों को पदक जीतते हुए देखा। ऐसी खबरों की कतरनें रखीं।’ धीरे-धीरे कोच प्रमोद यादव की सलाह पर वह पैदल चाल से जुड़े। रामबाबू 2019 में भोपाल के साई केंद्र के कोच को मनाने में सफल रहे। फरवरी 2020 में राष्ट्रीय पैदल चाल चैम्पियनशिप में चौथा स्थान हासिल किया। लॉकडाउन के दौरान घर लौटना पड़ा। फिर सड़क निर्माण कार्य में पिता की मदद की। उन्होंने फरवरी 2021 में राष्ट्रीय पैदल चाल चैम्पियनशिप में 50 किलोमीटर पैदल चाल का रजत पदक जीता। बाद में कई स्पर्धाओं में पदक जीते। अब वह सेना में हवलदार हैं। उनकी मां मीना देवी ने बताया कि उनके बेटे में बचपन से ही कुछ कर गुजरने की लगन थी। एशियाई खेलों में उनकी कामयाबी से पूरे गांव और जिले में खुशी का माहौल है।