News title should be unique not use -,+,&, '',symbols
मणिपुर की वुशू खिलाड़ी रोशिबिना की दिलचस्प कहानी खेलपथ संवाद इम्फाल। रोशिबिना देवी ने एशियाई खेलों में वुशू में भारत के लिए रजत पदक जीता। रोशिबिना के लिए बीते चार माह किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं रहे। एक ओर मणिपुर हिंसा में जल रहा था, जहां उनके माता-पिता और भाई-बहन फंसे हुए थे, दूसरी ओर वह एशियाई खेलों की तैयारियां श्रीनगर में कर रही थीं। जहां वह रोजाना माता-पिता से बात करती थीं, वहां वह दोनों से सप्ताह तक बात नहीं कर पाती थीं। वह तैयारियों में तो रहतीं, लेकिन उनका दिमाग मणिपुर में रहता। रोशिबना का परिवार मणिपुर के सबसे हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में से एक विष्णुपुर जिले में रहते हैं। हांगझोऊ में उनके पिता से बात हुई तो उन्होंने रोशिबिना से यही कहा कि उनकी चिंता छोड़कर वह देश के लिए पदक जीतें। यह वही पिता हैं, जिन्होंने रोशिबिना को खिलाने के लिए अपनी जमीन तक बेच दी। इन्हीं रोशिबिना ने गुरुवार को वूशु के 60 भार वर्ग में रजत जीता। उन्हें फाइनल में चीन की जियाओ वेई से 0-2 से हार का सामना करना पड़ा। रोशिबिना ने जकार्ता एशियाड में कांस्य जीता था। रोशिबिना बताती हैं कि वह मैतेई हैं। उनकी माता-पिता गांव में रक्षा के लिए रात्रि प्रहरी का काम कर रहे हैं। वह अंतिम बार अपने पिता से जून में मिली थीं, लेकिन वह अब भी गांव नहीं जा सकती हैं। उन्होंने पदक जीतने के बाद कुकी और मैतेई सुमदाय के बीच हो रही हिंसा को रोकने की अपील की। रोशिबिना कहती हैं कि उन्हें राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय कंपटीशन में खेलने के लिए उनके पास कई बार हवाई जहाज का टिकट नहीं होता था। पिता नोउरेम दामू सिंह उन्हें खेलने से रोकना नहीं चाहते थे। उन्होंने चुपचार खेती की जमीन के हिस्से को बेच दिया और टिकट जुटाए, लेकिन इस बारे में उन्हें नहीं बताया। उनकी बहन ने उन्हें बताया कि बाबा ने उनके लिए जमीन बेच दी है।