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मानसिक सुकून यदि चाहिए तो आराम करिए खेलपथ संवाद ग्वालियर। आज के आधुनिक दौर में सोशल मीडिया हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। चाहे आपको किसी तरह की जानकारी लेनी हो, अपने प्रोडक्ट की पब्लिसिटी करनी हो, अवेयर करना हो- हर फील्ड का प्लेटफार्म बनाने का काम कर रहा है। सोशल मीडिया ऑनलाइन प्लेटफॉर्म मस्तिष्क के उसी हिस्से को सक्रिय करते हैं, जिस हिस्से को अन्य आदतें भी करती हैं। लाइक्स, ज्यादा से ज्यादा व्यूअर, फॉलोअर और सब्सक्राइबर मिलने से डोपामाइन बढ़ जाता है और खुशी होती है। वहीं आपकी पोस्ट पर दूसरे के कमेंट या ट्रोलिंग से आप परेशान हो जाते हैं। असल में अब बदलते लाइफ स्टाइल की बदौलत सफलता का दुश्मन भी साबित हो रहा है-सोशल मीडिया का बढ़ता चलन। वो चाहे व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर हो या स्नैप चैट- व्यक्ति लगातार इनका आदी होता जा रहा है और अपने समय का बहुत बड़ा हिस्सा इनकी भेंट चढ़ा रहा है। कई लोग तो हर पांच मिनट में अपना स्टेटस अपडेट करते हैं और लाइक्स का शिद्दत से इंतजार करते हैं। ऐसा न करने पर उन्हें दिक्कतें होने लगती हैं। उनके दिमाग में एडिक्शन का खतरनाक पैटर्न बनना शुरू हो जाता है। भारत में एंडरॉयड मोबाइल फोन के तेजी से बढ़ते चलन के कारण आज तकरीबन 350 मिलियन सोशल मीडिया यूजर हैं। साल 2023 तक यह संख्या लगभग 447 मिलियन तक पहुंचने की संभावना है। औसतन ढाई से तीन घंटे रोजाना सोशल मीडिया पर बिताते हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के हिसाब से बड़े शहरों में 18 साल से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया की लत का शिकार हो रहे हैं। खतरे की घंटी, जब दूरी बनाना हो बेहतर निस्संदेह अगर सोशल मीडिया का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए, तो इससे आप नॉलेज और लाइफ बेहतर बना सकते हैं। लेकिन गलत इस्तेमाल शारीरिक-मानसिक रूप से बीमार बना सकता है। अगर अपनी फ़ीड चेक करते हुए या करने के बाद मूड में निगेटिविटी नजर आने लगे या कुछ ऐसा महसूस हो, तो सोशल मीडिया से दूरी बना लेना उचित है जैसे- साइकोलॉजिकल डिपेंडेंसी बहुत बढ़ रही हो, जलन, असुरक्षा जैसे भाव महसूस होने लगें, चिड़चिड़ापन , स्ट्रेस, एंग्जाइटी बढ़ जाए। इटिंग और स्लीपिंग पैटर्न में बदलाव हो यानी रात में नींद कम आने लगे या भूख कम लगे, रोजमर्रा की एक्टिविटीज में व्यवधान आने लगे, बार-बार फोन की ओर हाथ बढ़ने लगे, पियर ग्रुप या दोस्तों के साथ मिलने के बजाय सोशल मीडिया पर ही संपर्क में रहते हों। सोशल मीडिया डिटॉक्स के फायदे शोधों के निष्कर्ष हैं कि सोशल मीडिया से ब्रेक लोगों के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य में सुधार समेत कई तरह से फायदेेमंद है जैसे- मूड सुधार-रिसर्च से साबित हुआ है कि सोशल मीडिया से दूरी बना लेने पर आपके मूड में सकारात्मक बदलाव आ सकता है। आप अपनी तुलना दूसरों से नहीं करेंगे, दूसरों को देखकर दुखी रहने की प्रवृत्ति बंद हो जाती है। दिखावे से बचाव- सोशल मीडिया पर कुछ लोग अपने को बहुत खुश दिखाते हैं। इन साइट्स पर हर पांच मिनट में अपनी फोटो-वीडियो डालते रहते हैं। जिन्हें देखकर मन में तनाव रहता है, शो-ऑफ भरे पोस्ट डालना चाहते हैं जिन्हें न कर पाने पर दुःखी रहेंगे। पोस्ट पर अगर ज्यादा लाइक्स नहीं मिलें तो भी परेशान। सोशल मीडिया लत छोड़ आप शो-ऑफ से दूर सहज जीवन जी पाएंगे। गलत जानकारी से दूरी- सोशल मीडिया झूठी खबरों का अड्डा बन चुका है। कई बार व्यक्ति किसी कंपनी या प्रोडक्ट के बारे में दी गई गलत जानकारी पर आंख मूंद कर विश्वास कर लेता है। जिसकी वजह से वित्त व सेहत का नुकसान होता है। इस लत से निकलने पर इनसे बचा जा सकता है। एंग्जाइटी छूमंतर- रोज-रोज लाइमलाइट में आने के लिए 'क्या पोस्ट डालें ' ये नहीं सोचना पड़ेगा और न ही फिक्र रहेगी कि आपकी तस्वीरों या अन्य चीजों पर कितने लाइक्स-कमेंट आए, फोलोअर्स लिस्ट में कितना इजाफा हुआ। ब्रेक में ट्रोलिंग से उपजी एंग्जाइटी और डिप्रेशन से दूर रहेंगे। दिन की प्लानिंग -सुबह मोबाइल पर नोटिफिकेशन, एप्स पर स्टोरीज चैक करना बंद होता है। दिन की बेहतर प्लानिंग होती हैं। कंसन्ट्रेशन व क्रिएटिविटी - सोशल मीडिया ब्रेक से दूसरे कामों को करने में मन लगता है, कंसन्ट्रेशन बढ़ती है। वहीं खाली समय में प्रोडक्टिव या क्रिएटिव काम कर सकते हैं। हॉबीज को जीवन्त कर सकते हैं। सामाजिकता- व्यावहारिक रूप से लोगों के करीब आ सकते हैं। असल जिंदगी के लोगों संग समय बिताने का मौका मिलता है। बेहतर सेहत- स्क्रीन टाइम कम करने से नींद अच्छी आती है और स्वास्थ्य सही रहता है। आंखों को आराम मिलता है। लत से निकलने की राह सोशल मीडिया का इस्तेमाल नियंत्रित और क्रिएटिव तरीके से करने की जरूरत है। अमेरिका के हावर्ड स्कूल की रिसर्च के मुताबिक, सोशल मीडिया की लत छोड़ना उतना मुश्किल नहीं है। लेकिन इसके लिए आपको कुछ उपाय करने पड़ेंगे। वैसे तो सोशल मीडिया से आप कितनी देर ब्रेक लेना चाहते हैं इसके लिए कोई टाइम नहीं है, फिर भी एक दिन, सप्ताह या एक महीना चुन सकते हैं। दिन में समय सीमा निर्धारित करें। संकल्प लें सोशल मीडिया का उपयोग कम से कम करना है। कम्यूनिकेशन के लिए बेसिक फोन रखें तो बेहतर है। पढ़ाई के लिए टेबलेट या वाई फाई चलित स्मार्टफोन ही रखें। इस फोन में पीआईबी, गूगल, विकीपीडिया जैसी सरकारी वेबसाइट तो डाउनलोड कर पाएंगे। चैट ग्रुप्स में शामिल होने के बजाय नॉलेज वाली चीजों पर ध्यान दें। वहीं सोने के कुछ घंटे पहले मोबाइल को अलग रखें। अपनी हॉबीज, खेल, मिलने-जुलने के लिए खुद को तैयार करें। मोबाइल परे रखकर पेरेंट्स भी बच्चे के साथ समय बिताएं।