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बोर्ड की सालाना बैठक में अकेले पड़ गए थे 'प्रिंस ऑफ कोलकाता' खेलपथ संवाद मुम्बई। बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले, मय भी मयस्सर नहीं कि दिल से मेरे गम निकले। मिर्जा गालिब का ये शेर, फिलहाल सौरव गांगुली पर एकदम फिट बैठ रहा है। जिस भारतीय क्रिकेट बोर्ड को सौरव ने तीन साल तक चलाया। अब वहां उनकी कोई जगह नहीं है। मंगलवार यानी 11 अक्टूबर को हुई सालाना बैठक में सौरव गांगुली पर कई उंगलियां उठीं। कामकाज के तरीके पर ही सवालिया निशान खड़ा कर दिया गया। बीसीसीआई का एक धड़ा सौरव से नाराज नजर आया। पूरी मीटिंग में दादा अलग-थलग पड़े दिखे। चेहरे पर मायूसी भी साफ तौर पर पढ़ी जा सकती थी। गांगुली बोर्ड का अध्यक्ष बना रहना चाहते थे, लेकिन उनसे दोटूक मना कर दिया गया। भारतीय टीम के पूर्व कप्तान बोर्ड के इस फैसले से नाखुश थे। भारतीय क्रिकेट बोर्ड से सौरव गांगुली का बोरिया बिस्तर बंध चुका है। मुंबई में मंगलवार को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के हेड क्वार्टर के बाहर देश के अलग-अलग क्रिकेट संघ से आए नुमाइंदे इकट्ठे थे। सौरव गांगुली के भविष्य को लेकर आपस में खुसुर-फुसुर हो रही थी। कोई कह रहा था प्रिंस आफ कोलकाता की वापसी हो जाएगी। किसी ने दोबारा दिल्ली कैपिटल्स फ्रैंचाइजी में जाने की बात कह डाली। साफ था कि गांगुली इस दिन काफी कुछ खोने वाले थे, जिसका अंदाजा शायद उन्हें भी था। पिछली कार्यकारिणी के लगभग सभी सदस्यों को दोबारा मौका दिया गया। सिवाय गांगुली और संयुक्त सचिव जयेश जॉर्ज के। सूत्रों का कहना है कि गांगुली ने अपनी नाराजगी छिपाने की कोई कोशिश भी नहीं की। पुराना अध्यक्ष, नए अध्यक्ष का नाम प्रस्तावित करता है, लेकिन गांगुली ने रोजर बिन्नी के नाम का प्रस्ताव तक नहीं रखा। बीसीसीआई ऑफिस में मौजूद एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, 'सौरव गांगुली परेशान दिख रहे थे। हताश और निराश भी थे। नामांकन प्रक्रिया खत्म होने के बाद वह हेड क्वार्टर से निकलने वाले आखिरी आदमी थे। तेजी से अपनी कार में बैठे। खिड़की के शीशे चढ़ाए और निकल गए। नामांकन के दिन से पहले अनौपचारिक बैठकों में, गांगुली को बताया गया था कि उनका प्रदर्शन उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। सौरव गांगुली बीसीसीआई अध्यक्ष पद पर बने रहने के इच्छुक थे, लेकिन उन्हें बताया गया बोर्ड अध्यक्ष पद के मामले में ऐसा चलन नहीं है। पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष और वर्तमान बीसीसीआई टीम के मेंटर एन. श्रीनिवासन गांगुली के मुखर आलोचकों में से एक थे। दादा पर आरोप लगे कि उन्होंने ऐसे ब्रांड्स का समर्थन किया, जो बीसीसीआई के ऑफिशियल स्पॉन्सर्स के प्रतिद्वंद्वी थे। यह मुद्दा अक्सर सदस्यों के बीच चर्चा का विषय होता था। पहले भी इसे कई बार उठाया गया था। बीसीसीआई अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद सौरव गांगुली को आईपीएल चेयरमैन पद ऑफर किया गया, लेकिन यह तो एक तरह से दादा का डिमोशन था। ‘प्रिंस ऑफ कोलकाता’ के नाम से लोकप्रिय सौरव ने साफ मना कर दिया। उनका कहना था कि बीसीसीआई अध्यक्ष बनने के बाद मैं उसकी किसी उप-समिति का अध्यक्ष नहीं बन सकता। इन खबरों के बीच पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर सौरव गांगुली को अपमानित करने की कोशिश का आरोप लगा दिया, क्योंकि वह उन्हें पार्टी में शामिल करने में विफल रहे। तृणमूल के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा कि भाजपा ने पिछले साल के विधानसभा चुनाव से पहले लोगों के बीच यह संदेश फैलाने की कोशिश की थी कि राज्य में बेहद लोकप्रिय गांगुली पार्टी में शामिल होंगे। टीएमसी ने यह भी दावा किया कि यह ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ का एक उदाहरण है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह दूसरे कार्यकाल के लिए बीसीसीआई के सचिव पद पर बने रह सकते हैं, लेकिन गांगुली अध्यक्ष पद पर ऐसा नहीं कर सकते। हालांकि भाजपा ने आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि उन्होंने कभी गांगुली को पार्टी में शामिल करने की कोशिश नहीं की। संभावित नई कार्यकारिणीः अध्यक्ष: रोजर बिन्नी (पहले सौरव गांगुली), उपाध्यक्ष: राजीव शुक्ला (पहले भी यही थे), सचिव: जय शाह (पहले भी यही थे), संयुक्त सचिव: देवजीत सैकिया (जयेश जॉर्ज), कोषाध्यक्ष: आशीष शेलार (अरुण सिंह धूमल), आईपीएल चेयरमैन: अरुण सिंह धूमल (राजीव शुक्ला)।