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क्या दुखियारी बेटी को मिलेगा इंसाफ?
श्रीप्रकाश शुक्ला
लखनऊ। समय बदल रहा है, बेटियां घर की चौखट से बाहर निकल कर खेलने को आतुर हैं। अभिभावक भी चाहते हैं कि उनकी बेटियां खेल के क्षेत्र में राष्ट्र का गौरव बढ़ाएं लेकिन खेल तंत्र में घुसे कुछ भेड़ियों की करतूतें उनके पैरों पर बेढ़ियां डाल देती हैं। वे घुट-घुट कर रोती हैं, हर जवाबदेह से इंसाफ की भीख मांगती हैं। अफसोस उन्हें इंसाफ देने की बजाय चुप रहने को कहा जाता है। चूंकि भेड़ियों के हाथ लम्बे होते हैं ऐसे में डर में जीती बेटियां खेल छोड़ने को मजबूर हो जाती हैं और खेलनहार अट्टहास लगाकर मीडिया से कहते हैं कि वे दूध के धुले हैं। उनके खिलाफ आज तक किसी लड़की ने शिकायत नहीं की है।
हमारे राष्ट्र में खेल तंत्र में घुसे भेड़ियों का शिकार एक-दो नहीं बल्कि अब तक सैकड़ों बेटियां हो चुकी हैं। कई बेटियों ने ऐसे भेड़ियों के खिलाफ आवाज भी उठाई है लेकिन एक भी मामला अब तक सामने नहीं आया जिसमें किसी भेड़िये को सजा मिली हो। कुछ महीने पहले देश के खेल एवं युवा कल्याण मंत्री अनुराग ठाकुर ने लोकतंत्र के भरे दरबार में यह स्वीकारा था कि भारतीय खेल प्राधिकरण के सेण्टरों में खिलाड़ी बेटियों के साथ ज्यादती हुई है। बेटियों पर दुराचार की वारदातें सिर्फ भारतीय खेल प्राधिकरण के सेण्टरों में ही नहीं बल्कि लगभग हर क्रीड़ांगन में हो रही हैं। लोकलाज के डर से कुदृष्टि का शिकार हुई बेटियां असमय खेल छोड़ देती हैं।
कोई आठ साल पहले एक खिलाड़ी बेटी ने वाराणसी में उप-क्रीड़ाधिकारी पर यह आरोप लगाया था कि वह बेटियों की अस्मत का सौदा करता है। तब वह उप-क्रीड़ाधिकारी जांच में दोषी पाया गया था लेकिन कुछ माह बाद ही पैसों का लेन-देन कर उसे बाइज्जत बरी कर दिया गया। कसूरवार जहां आराम से नौकरी कर रहा है वहीं वह बेटी अपने साथ हुई नाइंसाफी पर आज भी खून के आंसू रो रही है। उत्तर प्रदेश सरकार एक तरफ नारी सशक्तीकरण के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है तो दूसरी तरफ उसके ही खेल मुख्यालय में बेटियां दरिंदों के हाथों नोची जा रही हैं। बेटियों की अस्मत का सौदागर अपने आपको दूध का धुला होने की दुहाई दे रहा है तो दूसरी तरफ पीड़ित बेटी पत्र लिखकर तथा वीडियो भेजकर प्रधानमंत्री, खेलमंत्री यहां तक कि खेल संगठन पदाधिकारियों से इंसाफ की भीख मांग रही है।
सभी को पता है कि खेलों में अपनी मजबूत पकड़ रखने वाला उत्तर प्रदेश का दरिंदा न केवल खतरनाक है बल्कि अपने हथकंडों से कुछ भी कर सकता है। सवाल यह उठता है कि क्या यह भेड़िया राष्ट्र के संविधान और कानून से भी बड़ा है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी विशिष्ट छवि के लिए जाने जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लगभग एक महीने पहले पीड़ित खिलाड़ी बेटी ने पत्र लिखकर इंसाफ मांगा था लेकिन आज तक उसे इंसाफ की कौन कहे ढांढस भी नहीं बंधाया गया। इसी तरह इस भेड़िये की शिकायतें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक से हो चुकी हैं लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। अलबत्ता यह भेड़िया अलमस्त पीड़ित बेटी का मुंह बंद कराने की कोशिशों में जुटा हुआ है।
खेलों में जिस तरह का जंगलराज चल रहा है, उसे देखते हुए हम कह सकते हैं कि बेटियों के लिए क्रीड़ांगन कतई महफूज नहीं हैं। दरअसल, हम जिस समाज के बदलने का दम्भ भरते हैं, उस समाज की सोच अभी भी नहीं बदली है। बेटियां खेलने की खातिर पहले ड्रेस कोड की सामाजिक बाधा को तोड़ती है, उसके बाद उन्हें खेल प्राधिकरणों और खेल मैदानों के अंदर शोषण का सामना करना पड़ता है। लाख परेशानियों के बावजूद जिस तरह खिलाड़ी बेटियां आज दुनिया भर में राष्ट्र का गौरव बढ़ा रही हैं उसे देखते हुए हमारी हुकूमतों को कम से कम उन्हें सुरक्षित माहौल तो मुहैया कराया ही जाना चाहिए। बेटियां आज खेलों में सिर्फ शिरकत ही नहीं करना चाहतीं बल्कि राष्ट्र के लिए पदक भी जीतना चाहती हैं। कन्या भ्रूण हत्या की बदनामी का दंश झेलने के बाद आज बेटी बचाओ के बाद बेटियों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने की बातें हो रही हैं लेकिन बेटियों को सुरक्षित माहौल मिले इस तरफ कतई ध्यान नहीं दिया जा रहा।
खेलों में अब बेटियों का लोहा मानने के बाद केंद्र और राज्य सरकारें पदक जीतने वाली खिलाड़ी बेटियों पर इनामों की बारिश तो करने लगी हैं, लेकिन यह सवाल अब भी बना हुआ है कि इन खिलाड़ी बेटियों को उचित अवसर और शोषण से बचाने के लिए सरकारें किस स्तर पर कदम उठाएंगी। 2015 में हुई जिस एक घटना ने महिला खिलाड़ियों के शोषण के बारे में देश का ध्यान खींचा था, वह केरल के भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के प्रशिक्षण केन्द्र में हुई थी। साई सेण्टर में चार उदीयमान महिला खिलाड़ियों ने आत्महत्या की कोशिश की थी, जिनमें से एक की मृत्यु हो गई थी। इन लड़कियों ने आरोप लगाए थे कि वहां उनका शारीरिक उत्पीड़न या यौन शोषण हो रहा था। जब यह शोषण उनकी बर्दाश्त से बाहर हो गया तो उन्होंने एक साथ जहरीला फल खाकर जान देने का प्रयास किया था। इस घटना से यह मुद्दा चर्चा में आया था कि किसी न किसी स्तर पर महिला खिलाड़ियों का कोई शोषण या उत्पीड़न हर क्रीड़ांगन में होता है। देश में पहले भी ऐसी कई घटनाओं का खुलासा हो चुका है, जब महिला खिलाड़ियों ने अपने साथ होने वाली ज्यादती के आरोप लगाए थे।
कोई भी बेटी जब तक उसके साथ ज्यादती न हुई हो, किसी पर मिथ्या आरोप नहीं लगा सकती क्योंकि उसके लिए समाज में इज्जत से जीना मुश्किल हो जाता है। सच कहें तो खिलाड़ी बेटियों को शोषण-मुक्त खेल जीवन मिले तो हमारा राष्ट्र खेलों में बहुत आगे जा सकता है। खिलाड़ी बेटियों को दरिंदों से बचाने के लिए न सिर्फ भारतीय खेल प्राधिकरण बल्कि सभी राज्य सरकारों को कुछ कठोर कदम उठाने होंगे। यदि इसी तरह के हालात रहे और दरिंदे बेटियों को खून के आंसू रुलाने के बाद भी सांड़ की मानिंद विचरण करेंगे तो जाहिर सी बात है कि महिला खिलाड़ी खेल के क्षेत्र में कभी भी आगे नहीं बढ़ पाएंगी। यदि ऐसा होता है तो हमारे स्वस्थ राष्ट्र के लिए यह काफी घातक होगा।