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ऐसा होने से 50 फीसदी खेलनहारों की जाएगी कुर्सी खेलपथ संवाद नई दिल्ली। लम्बे समय से केन्द्रीय खेल मंत्रालय भारतीय खेल संगठनों से नेशनल स्पोर्ट्स कोड लागू करने की वकालत कर रहा है लेकिन खेल संगठनों को अपनी जेबी संस्था मानने वाले खेल संगठन पदाधिकारी इसे लागू नहीं करना चाहते। खेल संगठन पदाधिकारियों की इस हठधर्मिता के चलते खेल संगठनों में विवाद की स्थिति बन गई। कुछ लोग अदालत भी गए परिणामस्वरूप कई संगठनों पर अदालत द्वारा प्रशासकों की नियुक्ति करनी पड़ी। दरअसल 2011 में अस्तित्व में आए नेशनल स्पोर्ट्स कोड में खेल संघ पदाधिकारियों का कार्यकाल नियत किया गया है। इसके तहत खेल संघ के अध्यक्ष अधिकतम 12 वर्ष व सचिव और कोषाध्यक्ष आठ-आठ वर्ष तक इन पदों पर रह सकते हैं। यह कार्यकाल समाप्त करने के बाद व दूसरे संघ में भी पदाधिकारी नहीं रह सकते। 70 वर्ष से अधिक आयु का व्यक्ति संघ में पदाधिकारी नहीं हो सकता। इसके अलावा यह भी स्पष्ट किया गया है कि एक व्यक्ति एक से अधिक संघों पर काबिज नहीं रह सकता। नेशनल स्पोर्ट्स कोड को लागू करना राष्ट्रीय खेल संगठनों ही नहीं राज्य व जिला स्तरीय खेल संगठनों को भी इसकी जद में लाना है। देखा जाए तो कई खेलनहार राष्ट्रीय ही नहीं राज्य के खेल संगठनों में भी वर्षों से जमे हुए हैं। नेशनल स्पोर्ट्स कोड लागू होने के बाद कई पदाधिकारियों को अपने पद छोड़ने होंगे इसीलिए लोग इसे किसी भी सूरत में लागू नहीं होने देना चाहते। अब जिस तरह अधिकांश खेल संगठनों पर अदालत के आदेश के बाद प्रशासक नियुक्त हो रहे हैं, उसे देखते हुए खेल संगठनों को हर हाल में नेशनल स्पोर्ट्स कोड को मानना ही होगा। केन्द्रीय खेल मंत्रालय को चाहिए कि जो खेल संगठन नेशनल स्पोर्ट्स कोड को नहीं मानें उनकी न केवल मान्यता समाप्त की जाए बल्कि उन्हें किसी भी तरह की आर्थिक मदद भी नहीं दी जाए। कुछ लोग कुतर्क करते हैं कि जब एक राजनीतिज्ञ जीवन पर्यंत राजनीति कर सकता है तो खेल पदाधिकारी क्यों नहीं। दरअसल अब नेशनल स्पोर्ट्स कोड सभी संघों पर लागू होना है। देश में तकरीबन 65 से अधिक खेल संघ हैं। इनमें से कई संघों पर लम्बे समय से चुनिंदा पदाधिकारी ही तैनात हैं, कई संघों में तो तयसीमा पर चुनाव भी नहीं कराए जाते हैं। ऐसे खेल संगठनों में नेशनल स्पोर्ट्स कोड लागू होने से इनका आधिपत्य भी टूटेगा और नए लोगों को सामने आने का मौका भी मिलेगा।