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ट्रॉयल में छूट के नाम पर लखनऊ में हुई जमकर लूट श्रीप्रकाश शुक्ला लखनऊ। पत्रकारिता का पेशा कुछ हद तक परिंदे की भांति होता है लिहाजा मुझे भी बहुत सारे शहरों और राज्यों की खाक छानना पड़ी। जहां भी परिचय होता जैसे ही बताता कि मैं उत्तर प्रदेश से हूं। लोग तपाक से कहते अच्छा आप यूपी वाले हो। मैं कई वर्षों तक इस जुमले को नहीं समझ पाया। अब समझ में आ चुका है कि लोग ऐसा क्यों कहते थे। दरअसल, उत्तर प्रदेश के लोग तुनकमिजाज होने के साथ ही जिस बात की जिद कर लेते हैं, उसे हासिल करना ही उनका मकसद हो जाता है, भले ही इसके लिए कितने गलत काम करने पड़ें। खेल निदेशालय उत्तर प्रदेश के निर्देश पर पिछले लगभग तीन माह स्पोर्ट्स कॉलेजों के लिए जो प्रतिभा चयन ट्रॉयल चली और जो परिणाम सामने आए उन्हें देखकर छल-प्रपंच तथा भ्रष्टाचार की गंध आ रही है। हाल ही खेल निदेशालय उत्तर प्रदेश द्वारा स्पोर्ट्स कॉलेजों में कक्षा छह में प्रवेश के लिए समूचे प्रदेश में ट्रायल लिए गए। इस ट्रायल में शामिल होने वाले बच्चों के लिए निदेशालय ने कई नियम बनाए थे। मसलन अभ्यर्थी 9 से 12 साल के बीच का होना था, उसकी शारीरिक स्थिति जिला चिकित्सा अधिकारी तथा निवास जिला अधिकारी से प्रमाणित होना जरूरी था लेकिन नियम-कायदे बला-ए-ताक रखकर चयन प्रक्रिया सम्पन्न हो गई और बच्चा की जगह बप्पा भी सफल हो गए। चयन में पक्षपात और भ्रष्टाचार की बातें बेबुनियाद नहीं हैं क्योंकि हॉकी की दोबारा फाइनल चयन ट्रायल से यह बात अपने आप सिद्ध हो चुकी है। जानकर ताज्जुब हुआ कि इस ट्रायल में जिसने चाहा वह शामिल हुआ। मजे की बात तो यह है कि कई अभ्यर्थी कम उम्र छिपाने को दाढ़ी-मूंछ तक बनाकर पहुंचे और चयनकर्ताओं ने चयन कर उनकी मुराद भी पूरी कर दी। वैसे हमारे देश में उम्र फरेब के लिए अभी तक कोई ऐसी वैज्ञानिक या मेडिकल जांच-पद्धति ईजाद नहीं हुई जिससे इसका सही-सही पता किया जा सके। कुछ उम्रदराज और बुद्धू अपने जिले और मण्डल में तो अनफिट करार दिए गए लेकिन उन्हें खेल निदेशालय ने लखनऊ आकर ट्रॉयल देने की छूट देकर टैलेंट सर्च का जनाजा निकाल दिया। सच कहें तो इसी छूट में जमकर लूट हुई। कुछ लोग तो यहां तक कहते सुने गए कि मोटी रकम खर्च की है लिहाजा किस ससुरे में दम था कि उसे चयन से रोक सकता। मैंने चिकित्सकों से मशविरा किया क्या 12 साल तक के बच्चों के 30 या 32 दांत हो सकते हैं, डॉक्टर साहब ने कहा कतई नहीं। दोस्तों माजरा गम्भीर है लेकिन मेरी क्या मजाल कि कुछ लिख सकूं। साहब नाराज हो गए तो मुझे लेने के देने पड़ जाएंगे। चयन प्रक्रिया से जुड़े साहबानों नाराज न होना क्योंकि हम भी यूपी वाले हैं, अपनी पर आए तो हम भी ट्रायल दे देंगे।