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जो रूट और जॉनी बेयरस्टो के सामने घुटने टेके श्रीप्रकाश शुक्ला तीन दिन तक जिस भारतीय टीम की बलैयां ली जा रही थीं, उसने खेल के चौथे दिन ही पराजय की पटकथा लिख दी थी। खेल के पांचवें दिन जो रूट और जॉनी बेयरस्टो की जोड़ी ने जिस तरह भारत को पराजित किया उसे हम क्रिकेट की अनिश्चितता कतई नहीं कह सकते। सच कहें तो भारतीय टीम हारी नहीं बल्कि एक तरह से उसने आत्महत्या की है। पांचवें टेस्ट की दोनों पारियों में शानदार सैकड़ा जमाने वाले जॉनी बेयरस्टो मुकाबले के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी तो टेस्टों में चार शतक लगाने वाले जो रूट सीरीज के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रहे। इन दोनों खिलाड़ियों से भारतीय बल्लेबाजों को नसीहत लेनी चाहिए, यदि नसीहत बुरी लगे तो उन्हें क्रिकेट से संन्यास ले लेना चाहिए। पांचवें और निर्णायक टेस्ट में मिली शर्मनाक पराजय के बाद भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को कुछ कठोर निर्णय लेने होंगे। आखिर कब तक उन खिलाड़ियों को ढोया जाता रहेगा जोकि रन बनाना तो दूर विकेट पर पांव जमाना भी भूल चुके हैं। इन खिलाड़ियों से तो उन प्रतिभाओं का ही नुकसान हो रहा है जोकि टीम इंडिया में लम्बे समय से प्रवेश की बाट जोह रहे हैं। यद्यपि यह सीरीज 2-2 से बराबर रही लेकिन आज की इस पराजय से पहली बार टेस्ट कप्तानी करने वाले तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह जरूर मर्माहत होंगे। खैर, इंग्लैंड टीम ने पांचवां और अंतिम टेस्ट जीतकर क्रिकेट के कई मिथक और रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। इस हार से भारत ने 15 साल बाद सीरीज जीतने का मौका गंवा दिया है। इससे पहले इंग्लैंड ने कभी भी टेस्ट में जहां 360 रन से ज्यादा के लक्ष्य का सफलतापूर्वक पीछा नहीं किया था वहीं भारतीय टीम टेस्ट में 340 रन से ज्यादा का लक्ष्य देने के बाद कभी हारी नहीं थी। आज इंग्लैंड के जीतते यह दोनों ही रिकॉर्ड टूट गए। पिछले 15 साल में भारत ने 18 बार पहली पारी में 400 से ज्यादा रन बनाए और 15 मैचों में विजय पताका फहराई थी। तीन मैच ड्रॉ हुए। इस मैच में भारत ने पहली पारी में 416 रन बनाए थे। इस पराजय से टीम इंडिया 15 साल में पहली बार पहली पारी में 400 से ज्यादा रन बनाने के बाद भी मुकावला हार गई। इंग्लैंड की धरती पर अब तक सबसे बड़ा लक्षय 404 रन है, जिसका सफलतापूर्वक पीछा किया गया है। साल 1948 में ऑस्ट्रेलिया ने हेडिंग्ले मैदान पर इंग्लैंड के खिलाफ यह लक्ष्य हासिल किया था। जो रूट (142) और जॉनी बेयरस्टो (114) ने अपने नाबाद शतकों से न केवल अपनी टीम को जिताया बल्कि अपनी धरती में 378 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए जीत हासिल करने वाली दूसरी टीम बन गई। एजबेस्टन में भारतीय टीम की यह सातवीं टेस्ट पराजय है। इससे पहले इस मैदान में भारतीय टीम 1967, 1974, 1979, 1996, 2011 और 2018 में भी हारी थी जबकि 1986 में वह मुकाबला बराबर रखने में सफल रही थी। जीत-हार खेल का हिस्सा है लेकिन मुकाबले में संघर्ष किए बिना पराजय स्वीकारना आत्महत्या ही कही जाएगी।