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पूर्व खिलाड़ी का एक फेफड़ा काटकर हटाया, दूसरा खराब 30 साल जेवलिन कोच रहीं मारिया को मदद की दरकार खेलपथ संवाद रांची। हमारी सरकारें खिलाड़ियों की कितनी हमदर्द और मददगार हैं इसका जीता जागता उदाहरण हैं झारखण्ड की राष्ट्रीय रिकॉर्डधारी जेवलिन थ्रोवर मारिया गोरती खलखो। मारिया क्षयरोग से पीड़ित हैं उनका एक फेफड़ा काटकर हटाया गया वहीं दूसरा भी खराब है। 30 साल जेवलिन की प्रशिक्षक रहीं मारिया फिलवक्त तंगहाली के बीच जीवन बसर करने को मजबूर हैं। वह बिस्तर में पड़े पड़े जीवन के अंतिम दिन गुजार रही हैं। टोक्यो ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज चोपड़ा ने जेवलिन थ्रो में पदक जीता तो सबकी जुबां पर उनका नाम आया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जेवलिन में नीरज के चमकने से कई दशक पहले झारखंड की जेवलिन की खिलाड़ी मारिया गोरती खलखो भी हुईं जिनका पूरा जीवन इस खेल के प्रति समर्पित रहा। लेकिन आज तंगहाली में जीवन बसर कर रही हैं। मारिया गोरती खलखो नेशनल रिकार्ड होल्डर हैं। 30 साल तक वह जेवलिन थ्रो टीम की कोच रहीं। राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी उनके कोचिंग से निकले। लेकिन आज वह गंभीर रूप से बीमार हैं। पिछले तीन सालों से टीबी से पीड़ित हैं। उनके पास दवा के भी पैसे नहीं हैं। वह बिस्तर पर ही कराहती रहती हैं। कई बार सरकार और अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन मदद के नाम पर सिर्फ आश्वासन ही मिला। राष्ट्रीय स्तर के कबड्डी के खिलाड़ी प्रवीण कुमार सिंह बताते हैं कि मारिया मूल रूप से झारखंड के गुमला जिले के चैनपुुर की रहने वाली हैं। अभी रांची के नामकुम आरा गेट की सीरी बस्ती में अपनी बहन के यहां रहती हैं। बहुत कम उम्र से ही उन्होंने भाला फेंकना शुरू कर दिया था। 1970-80 के दशक में उन्होंने कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया। इनमें मेडल जीते। बाद में इन्होंने कोचिंग में लम्बा समय दिया। 1988 से 2018 तक लगातार 30 वर्षों तक लातेहार के महुआटांड में जेवलिन थ्रो की कोच रहीं। प्रवीण बताते हैं कि मारिया ने ही महुआटांड को जेवलिन थ्रो के कोचिंग हब के रूप में बदला। उन्होंने देश को कई खिलाड़ी दिए हैं। चार साल पहले तक वो प्रशिक्षण दे रहीं थीं। लेकिन रिटायर होने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति बदहाल हो गई। मारिया गोरती खलखो की उम्र 63 वर्ष है। उन्हें संयुक्त बिहार के समय ही जेवलिन थ्रो कोच के तौर पर कॉन्ट्रेक्ट पर रखा गया था। लेकिन झारखंड के अलग होने के बाद उन्हें स्थायी नहीं किया गया। उन्हें पेंशन तक नहीं मिलती। जबकि झारखंड की खेल नीति में है कि राष्ट्रीय खिलाड़ियों को हर माह पेंशन दी जाएगी। मारिया को मदद दिलाने के लिए सोशल मीडिया पर भी ट्वीट किए गए। इसके बाद खेल निदेशालय की ओर से मारिया को मदद देने का आश्वासन दिया गया है। मारिया टीबी की मरीज रही हैं। बीमारी से उनका एक फेफड़ा खराब हो चुका है। हर माह उनकी दवा के लिए पांच हजार रुपए से अधिक जरूरत होती है। काफी गुहार लगाने के बाद उन्हें एक लाख रुपए देने का सरकारी आश्वासन मिला था, लेकिन दिया नहीं गया। इसके काफी समय बाद उन्हें खेल विभाग की ओर से 25 हजार रुपए मिले थे। मारिया कहती हैं कि इलाज के लिए इतने पैसे काफी नहीं हैं। उनकी बहन भी गरीब है। सरकार पेंशन दे तो उनकी स्थिति सुधर सकती है। इलाज के लिए उन्होंने एक लाख का कर्ज भी लिया है। पैसे नहीं होने से कर्ज भी नहीं चुका पा रही हैं। रांची जिला एथलेटिक्स संघ के सचिव प्रवाकर कहते हैं कि संघ की ओर से मारिया को 10 हजार रुपए की मदद दी गई थी। सरकार की ओर से भी मदद करने की बात कही गई है। हॉकी के ही अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे गोपाल भेंगरा। वे झारखंड के खूंटी जिले के तोरपा के रहने वाले थे। हाल में उनका निधन हो गया था। निधन से पहले तक सुनीस गावस्कर हर माह उन्हें 15 हजार रुपये भेजते थे ताकि सही से गुजर-बसर हो सके। 21 सालों तक सुनील गावस्कर उनकी मदद करते रहे। खेलों के लिए शादी भी नहीं की अंतरराष्ट्रीय भालाफेंक खिलाड़ी मारिया ने खेलों के लिए शादी भी नहीं की और उन्होंने अपना पूरा जीवन खेल को समर्पित कर दिया। 1970 के दशक में उन्होंने एक दर्जन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेकर कई स्वर्ण और रजत पदक अपने नाम किए थे। उच्चतम स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के बाद उन्होंने अपने जीवन के लगभग 30 वर्ष अन्य एथलीटों को भालाफेंक के प्रशिक्षण में बिताए। बता दें कि आज वह फेफड़ों की बीमारी के कारण सांस के लिए हांफ रही हैं और हमेशा बिस्तर पर पड़ी रहती हैं। उन्हें चलने के लिए भी सहारे की जरूरत पड़ती है। अफसोस की बात ये है कि अपने जमाने की एक प्रतिष्ठित एथलीट के पास आज अपने लिए दवा और खाना खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं। मीडिया में खिलाड़ी मारिया की बीमारी और खराब वित्तीय स्थिति पर एक रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद झारखंड खेल विभाग ने उनकी स्थिति पर ध्यान दिया और उन्हें तत्काल 25,000 रुपए की सहायता दी। इससे पहले विभाग ने मारिया की बीमारी से लड़ने में मदद के लिए खिलाड़ी कल्याण कोष से एक लाख रुपए की आर्थिक मदद की थी, लेकिन महंगी दवाओं और इलाज के कारण यह राशि जल्द ही समाप्त हो गई। पूर्व एथलीट को वृद्धावस्था पेंशन भी नहीं मिलती है। डॉक्टरों ने मारिया को दूध पीने, अंडे खाने और पौष्टिक भोजन करने की सलाह दी है, लेकिन जब वह एक दिन में दो वक्त का भोजन नहीं कर सकतीं, तो पौष्टिक भोजन कैसे खरीदेंगी? बता दें कि उनकी दवाओं पर ही हर महीने 5,000 रुपए से ज्यादा खर्च हो जाता है। फेफड़ों की बीमारी की शुरुआत के बाद से मारिया पर एक लाख रुपए से ज्यादा का कर्ज है। मारिया बचपन से ही एथलीट बनना चाहती थीं। 1974 में, जब वह कक्षा 8 की छात्रा थीं, तब उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की भाला प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता था। उन्होंने अखिल भारतीय ग्रामीण शिखर सम्मेलन में भालाफेंक में स्वर्ण पदक भी जीता था। 1975 में उन्होंने मणिपुर में आयोजित राष्ट्रीय स्कूल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता तो 1975-76 में जब जालंधर में इंटरनेशनल जेवलिन मीट का आयोजन किया गया तो मारिया ने फिर से गोल्ड मेडल जीता। 1976-77 में भी, उन्होंने कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय प्रतियोगिताओं में अपनी योग्यता साबित की। 1980 के दशक में, उन्होंने कोचिंग की ओर रुख किया। 1988 से 2018 तक, उन्होंने झारखंड के लातेहार जिले के महुआदनार में सरकारी प्रशिक्षण केंद्र में 8,000 से 10,000 रुपए प्रतिमाह के वेतन पर एक कोच के रूप में कार्य किया।