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मिटाएगी टोक्यो ओलम्पिक में पदक न जीत पाने का मलाल मनोज चतुर्वेदी भारतीय महिला हॉकी टीम का पुरुषों की तरह इतिहास चमकदार तो नहीं है। पिछले साल टोक्यो ओलम्पिक में वह भले ही पोडियम पर चढ़ने में कामयाब नहीं हो सकी, पर उसने अपने जानदार प्रदर्शन से अपना नाम दुनिया की धाकड़ टीमों में शुमार जरूर करा लिया। टीम में आए इस बदलाव का ही परिणाम है कि सविता पूनिया की अगुआई वाली भारतीय टीम से नीदरलैंड और स्पेन में शुरू हो रहे एफआईएच महिला हॉकी विश्व कप में भारत के पोडियम पर चढ़ने की उम्मीद की जा रही है। भारतीय टीम में आए इस बदलाव का श्रेय पाने के हकदार निश्चय ही टोक्यो ओलम्पिक तक टीम के कोच रहे शोर्ड मारिन हैं। उन्होंने टीम की खिलाड़ियों के कौशल को मांजने के साथ यह विश्वास बनाया कि उनमें हर टीम को फतह करने का माद्दा है। हम सभी जानते हैं कि भारतीय महिला हॉकी टीम के पास सफलताओं के नाम पर 1982 के मास्को ओलंपिक में चौथा स्थान, 1974 के तेहरान विश्व कप में चौथा स्थान और 1982 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक के अलावा कुछ एशिया कप की सफलताएं ही हैं। तेहरान विश्व कप के समय तक महिला हॉकी बाकी देशों में बहुत लोकप्रिय नहीं थी और मास्को ओलम्पिक में तमाम देशों ने भाग ही नहीं लिया था। वहीं 1982 के एशियाई खेलों का घर में आयोजन होने का लाभ मिला था। सही मायनों में पिछले साल टोक्यो ओलम्पिक में चौथा स्थान पाने की बाकी सभी सफलताओं से ज्यादा अहमियत है। हमारी टीम टोक्यो में कांस्य पदक के मुकाबले में इंग्लैंड से कड़ा संघर्ष करने के बाद 3-4 से हार गई थी, हमारी खिलाड़ियों की आंखों में पदक न जीत पाने की वजह से आंसू थे। उस समय मारिन ने कहा था कि मैं तुम्हारे आंसू तो नहीं पोंछ सकता। पर मुझे तुम्हारी इस हार पर भी फख्र है, क्योंकि तुमने पदक के अलावा बहुत कुछ जीत लिया है और सारे देश को प्रेरित करने के साथ गौरवान्वित किया है। मारिन की इस बात में दम है, क्योंकि यहीं से भारतीय महिला हॉकी को नया जन्म मिला है। इसका एहसास टीम ने पिछले दिनों एफआईएच प्रो लीग में पहली बार भाग लेकर कराया। इसमें भारतीय टीम ने अर्जेंटीना के अलावा नीदरलैंड, जर्मनी, स्पेन के खिलाफ एक-एक जीत के साथ तीसरा स्थान हासिल किया। भारत को इस विश्व कप में इंग्लैंड से खेलकर पूल बी में अपना अभियान शुरू करना है। पर दुर्भाग्य से हमारी टीम को प्रो लीग में उसकी ताकत का आकलन करने का मौका ही नहीं मिल सका। असल में इस मुकाबले के समय कोविड के फैल जाने और इंग्लैंड की कई खिलाड़ियों के चोटिल होने की वजह से वह टीम उतारने की स्थिति में ही नहीं थी। इसलिए इस साल अप्रैल की शुरुआत में इन दोनों मैचों को रद्द करके भारत को पूरे छह अंक दे दिए गए थे। इस विश्व कप के फॉर्मेट के हिसाब से भारतीय टीम यदि सीधे क्वार्टर फाइनल में स्थान बनाना चाहती है, तो उसे अपने पूल में चीन और न्यूजीलैंड को हराकर पहला स्थान प्राप्त करना होगा। भारत ने चीन को तो कई बार हराया है। लेकिन न्यूजीलैंड के खिलाफ उसका रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है। यह जरूर है कि न्यूजीलैंड की टीम कोविड के कारण पिछले दो सालों में कम ही खेली है और इस बार एफआईएच प्रो लीग में भी खेलने नहीं उतरी। इसका फायदा जरूर भारतीय टीम को मिल सकता है। लगभग दशक पहले तक भारतीय महिला टीम सुविधाओं की कमी से जूझती रही थी। इस कारण उसे अंतरराष्ट्रीय अनुभव भी कम ही मिल पाता था। ओलम्पिक और विश्व कप से पहले एक-दो विदेशी दौरे ही तैयारियों के लिए मिल पाते थे। लेकिन पिछले कुछ सालों में इस स्थिति में सुधार हुआ है। रानी रामपाल के चोटिल होने की वजह से पिछले एक साल से टीम का नेतृत्व संभालने वाली सविता पूनिया कहती हैं, 'प्रो लीग में भाग लेने से खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय अनुभव मिलने और टॉप टीमों के खिलाफ खेलने से हमारी विश्व कप की अच्छी तैयारी हुई और बेहतर प्रदर्शन करने के लिए खिलाड़ियों का मनोबल भी ऊंचा है। टोक्यो ओलंपिक में चौथे स्थान पर रहकर पदक से वंचित होने का मलाल हमें आज भी है। हमने अपनी इस गलती से बहुत कुछ सीखा है और हम इसे सुधारने के लिए बेताब हैं।' उनकी बातों में दम है, इसीलिए उनकी टीम से उम्मीद है।