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पिता देश के लिए नहीं खेल पाए पर बेटी ने रचा इतिहास पिता के कहने पर छह साल पहले शुरू किया था भारोत्तोलन खेलपथ संवाद नई दिल्ली। 19 साल की हर्षदा शरद गरुड़ ने वह उपलब्धि हासिल की जिसे देश का कोई भी भारोत्तोलक अब तक नहीं छू पाया। वडगांव (पुणे) की भारोत्तोलक हर्षदा हेरिकलिओन (ग्रीस) में 45 किलो में जूनियर विश्व चैम्पियन बनीं, ऐसा करने वाली वह देश की पहली भारोत्तोलक हैं। स्वर्ण पदक जीतने के बाद हर्षदा भावुक हो गईं। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने पिता शरद गरुड़ का सपना पूरा किया है। पिता भी भारोत्तोलक थे और महाराष्ट्र के लिए खेले, लेकिन घर के हालात ऐसे नहीं थे कि वह भारोत्तोलन में ऊंचाईयां छू पाते। उनका देश के लिए खेलने का सपना था, लेकिन उनकी बेटी ने अब देश के लिए जूनियर विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण जीता है। हर्षदा की खुशी का सबसे बड़ा कारण स्वर्ण पदक के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना है। उन्होंने कुल 153 किलो (70 स्नैच और 83 क्लीन एंड जर्क) वजन उठाया। यह उनका सर्वश्रेष्ठ है। हर्षदा के मुताबिक जब वह प्लेटफॉर्म पर लिफ्टिंग करने जा रही थीं तो उनके दिमाग में सिर्फ यही बात थी कि उन्हें अपनी सभी छह लिफ्ट उठानी हैं। स्वर्ण जीतने की बात उनके दिमाग में कभी नहीं आई। हालांकि पदक जीतने के बारे में वह सोच रही थीं। उनका सभी छह लिफ्ट उठाना उनके स्वर्ण जीतने का कारण बना। हर्षदा ने छह साल पहले भारोत्तोलन शुरु किया। उनके मुताबिक एक दिन उनसे पिता ने कहा कि, क्या वह भारोत्तोलन करेगी? उन्होंने यह खेल कभी नहीं देखा था, लेकिन उन्होंने हां कर दी, क्यों कि वह जानती थीं कि पिता की इस खेल से भावनाएं जुड़ी हुई हैं। पिता उन्हें खेल शुरु करने से पहले गुरुकुल जिम लेकर गए। वहां उन्होंने लोगों को वजन उठाते देखा तो तुरंत खेलने के लिए हामी भर दी। तब से वह भारोत्तोलन कर रही हैं। पिता नगर परिषद में हैं और गांव में पानी सप्लाई की जिम्मेदारी उनकी होती है, लेकिन भारोत्तोलन के दौरान जिस तरह के कष्ट पिता ने उठाए, उनके साथ उन्होंने ऐसा नहीं होने दिया। उनकी खुराक का पूरा ख्याल रखा। 2021 की एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में कांस्य जीतने वाली हर्षदा की आदर्श मीराबाई चानू हैं। मीरा ने 2013 में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में कांस्य जीता था। वहीं अंजलि पटेल दुर्भाग्यशाली रहीं और यहां कांस्य पदक से चूक गईं। उन्होंने 148 किलो वजन उठाया, जबकि कांस्य 149 किलो पर आया।