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खेलपथ संवाद लखनऊ। पुश्तैनी खेल हॉकी का लखनऊ कभी गढ़ रहा है लेकिन अब यहां हॉकी में गिरावट देखी जा रही है। यद्यपि यहां हॉकी के कई दिग्गज खिलाड़ी हैं लेकिन उनमें खिलाड़ी तैयार करने की ललक न के बराबर है। देखा जाए तो तो उत्तर प्रदेश के खेल निदेशक राम प्रकाश सिंह भी हॉकी के खिलाड़ी रहे हैं और यह हॉकी उत्तर प्रदेश के सचिव भी हैं लेकिन इनके कार्यकाल में लखनऊ ही नहीं समूचे प्रदेश की हॉकी अर्श से फर्श पर है। रजनीश मिश्रा जैसे पुराने दिग्गज हॉकी खिलाड़ी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार खेलों के लिए अच्छा कर रही है, यह बात हर खेलप्रेमी को रास नहीं आती। जब मैं आठ साल का था तो दोस्तों के साथ गांव में ही क्रिकेट खेलता था। एक दिन मेरे पड़ोसी के घर कुछ हॉकी खिलाड़ी आए थे, मैं भी वहां मौजूद था। बहुत देर तक हॉकी स्टिक निहारने पर एक खिलाड़ी ने मुझे बुलाकर अपनी हॉकी दे दी। बस, उसी दिन से क्रिकेट छोड़कर हॉकी खेलने लगा। फिटनेस अच्छी थी, इसलिए पापा ने स्पोर्ट्स कॉलेज का ट्रायल दिलवा दिया। यह वर्ष 1986 की बात है। उस समय स्पोर्ट्स कॉलेज में पहले से करीब 60 खिलाड़ियों का दल मौजूद था, इनमें कई बड़े खिलाड़ी थे। इनके बीच जगह बनाना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। यह कहना है पूर्व भारतीय हॉकी कप्तान रजनीश मिश्रा का। मूलरूप से फैजाबाद निवासी रजनीश की कर्मभूमि लखनऊ है। निरंतर कड़ी मेहनत और लक्ष्य हासिल करने की लगन ने उन्हें दुनिया के बड़े फुलबैक खिलाड़ियों के श्रेणी में शामिल करा दिया था। रजनीश मिश्रा का कहना है कि करियर के शुरुआती दिनों में कॉलेज की टीम में भी जगह बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था। स्पोर्ट्स कॉलेज में पहले से ही राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी मौजूद थे, ऐसे में उनके बीच टीम में जगह बनाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था। लेकिन, कोच के मार्गदर्शन और हॉकी के जुनून से मैंने बहुत तेजी से सफलताएं हासिल कीं। मेरे खेल को देखते हुए ही हॉकी इंडिया ने वर्ष 1995 में मुझे भारतीय टीम की कमान सौंपी थी। वह पल मैं कभी नहीं भूल सकता। उन्होंने करियर की दूसरी यादगार घटना ओलम्पिक के लिए चुनी गई टीम में शामिल न करना बताया। बोले, मेरी तैयारी बहुत अच्छी थी, फिटनेस में भी कोई समस्या नहीं थी। उस समय मेरा प्रदर्शन बढ़िया था, लेकिन बिना किसी कारण टीम से बाहर कर दिया गया। इसकी वजह से मैं काफी दिनों तक परेशान था। बता दें, रजनीश मिश्रा इस समय एयर इंडिया हॉकी टीम के कोच हैं। हॉकी के राष्ट्रीय चयनकर्ता भी हैं। उत्तर प्रदेश सरकार उन्हें राज्य के सर्वोच्च खेल सम्मान लक्ष्मण पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। रजनीश वर्ष 1996 में सुल्तान अजलान शाह, इंदिरा गांधी गोल्ड कप और वर्ष 1997 में भारत दौरे पर आई ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ भारतीय टीम के कप्तान भी थे। पूर्व भारतीय हॉकी कप्तान और दिग्गज हॉकी खिलाड़ी रजनीश मिश्रा ने लखनऊ सहित देशभर में ज्यादा से ज्यादा एस्ट्रोटर्फ स्टेडियम की वकालत की। बोले, घास के मैदान और एस्ट्रोटर्फ पर खेली जाने वाली हॉकी में बहुत अंतर होता है। घास के मैदान पर गेंद को सीधी स्टिक से रोका जाता है। जबकि एस्ट्रोटर्फ पर गेंद को रोकने के लिए स्टिक को तिरछा करना पड़ता है। इसके अलावा पुशिंग, ड्रिबलिंग में भी काफी अंतर होता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी तैयार करने के लिए उपरोक्त बातें बहुत जरूरी हैैं। रजनीश ने कहा, वैसे तो लखनऊ में तीन एस्ट्रोटर्फ स्टेडियम हैं, लेकिन खिलाड़ियों के हिसाब से अभी भी दो से तीन एस्ट्रोटर्फ की यहां और जरूरत हैं। लखनऊ जूनियर हॉकी विश्वकप की मेजबानी कर पूरे विश्व में सुर्खियां बटोर चुका है। भविष्य में यहां और भी बड़े टूर्नामेंट हो सकते हैं। हालांकि, पूर्व कप्तान ने खेल और खिलाड़ी के लिए सरकार के प्रयासों को सराहा। कहा, सरकार के प्रयास से अब खिलाड़ियों के लिए सुविधाएं बढ़ रही हैं, लेकिन इस पर और ध्यान देने की जरूरत है।