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भारत मैच जीतता या हारता घरों में पथराव जरूर होता खेलपथ संवाद जम्मू। कश्मीरी पंडितों को घाटी में तरह-तरह की यातनाएं सहनी पड़ीं। खेल भी इससे अछूता नहीं रहा। भारत पाकिस्तान से मैच जीतता या हारता कश्मीरी पंडितों के घर पत्थर जरूर बरसाए जाते। द कश्मीर फाइल्स पर वहां की हिन्दू आवाम कुछ इसी तरह के उद्गार व्यक्त करती है। कश्मीर घाटी में लम्बे समय से ही कश्मीरी पंडितों के लिए नफरत के बीज बोए जा रहे थे। इसकी शुरुआत वर्ष 1975 से पहले ही हो चुकी थी। अस्सी का दशक आते-आते खुलेआम घरों को खाली कर जाने की धमकी दी जाने लगी। वर्ष 1985 के बाद घाटी में हिंदुओं का रहना मुश्किल हो गया था। महिलाओं और लड़कियों को एक गुट लगातार निशाना बना रहा था। उनका बाहर निकलना मुश्किल हो गया था। यह आपबीती है मूल रूप से रैनावाड़ी श्रीनगर के रहने वाले सुरेंद्र कुमार रैना की। सुरेंद्र रैना ने बताया कि नब्बे का दौर आते-आते घाटी में रहना मुश्किल हो गया था। सरकारी कर्मियों समेत लोगों को दफ्तर जाने के लिए संषर्घ करना पड़ता था। चारों तरफ दहशत का माहौल बना हुआ था। उन्होंने बताया कि इसी बीच एक दिन भारत-पाकिस्तान का मैच चल रहा था। पाकिस्तान की टीम हारने लगी तो दहशतगर्द मोहल्ले में नारेबाजी करने के साथ कश्मीरी पंडित महिलाओं के ऊपर कमेंट करने लगे। इसके बाद देश विरोधी नारे शुरू हो गए। देर रात होते-होते सभी के घरों में पथराव होने लगा। उस दिन लगा की अब यहां जान बचाना मुश्किल है। अभी जम्मू के दुर्गानगर में रहने वाले रैना ने बताया कि एक गुट के लोग मैच होने या अन्य धार्मिक जलसे के दौरान कश्मीर पंडितों का जीना मुहाल कर देते थे। वर्ष 1990 में महिलाओं का घरों से निकलना मुश्किल हो गया था। सबसे ज्यादा परेशानी क्रिकेट मैच के दौरान होती थी। भारत-पाकिस्तान की टीमों के बीच मैच होने पर सभी कश्मीरी पंडितों से जबरन चंदा वसूला जाता था। पाकिस्तान की टीम हारे या जीते हम लोगों के घरों में पथराव यहां तक कि आगजनी भी हुआ करती थी। छोटे बच्चों को मैच वाले दिन घरों से बाहर नहीं जाने देते थे। सुरेंद्र कुमार रैना ने बताया कि टीका लाल टपलू की हत्या के बाद कश्मीरी पंडितों को टारगेट कर मारा जाने लगा। इसका कारण उनका देशभक्त होना था। उनकी हत्या इसलिए भी हुई थी कि वह हिंदूवादी संगठन से जुड़े हुए थे। सरकारी और निजी क्षेत्र में काम करने वाले पंडितों को मारने के लिए दहशतगर्दों ने एक लिस्ट भी बनाई थी। इसके बाद वे लोग लगातार उनके निशाने पर रहने लगे। वर्ष 1990 के शुरुआती पखवाड़े में दहशतगर्दों ने एक सामूहिक रैली निकाली थी। इसके बाद पंडितों का नरसंहार शुरू हो गया था। पंडितों को कश्मीर छोड़ने या फिर धर्म बदलने के लिए लगातार धमकाया जाने लगा, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें घाटी छोड़नी पड़ी। कश्मीरी पंडित रैना ने बताया कि इलाके में कई मुस्लिम लोग रहते थे। हम एक-दूसरे के दुख-सुख में लगातार साथ रहते थे। लेकिन, फिर हवा का रुख साम्प्रदायिक हो गया। धमकियों का आलम यह था कि अपने ही लोग अब पराए हो गए थे। वह भी लगातार इलाके को छोड़कर दूसरी जगह जाने को कह रहे थे। इससे लग रहा था कि कभी भी कुछ हो सकता है। दहशतगर्द आम मुस्लिमों को पंडितों के खिलाफ भड़का रहे थे। उनको पंडितों के खिलाफ कई तरह से उकसाया जा रहा था। जिससे वह पूरी तरह से दहशतगर्दों का साथ दें। पीड़ित रैना ने बताया कि केंद्र सरकार कश्मीरी पंडितों की घर वापसी के लिए योजना चला रही है। यह बेहतर है। उन्होंने कहा कि कश्मीरी पंडितों की सम्मान सहित घर वापसी होने के साथ उनकी जमीनों पर अधिकार दिलवाना चाहिए। इसके अलावा जिस तरह के हालात घाटी में हैं उसके हिसाब से उनकी सुरक्षा की गारंटी भी देनी होगी। रैना ने द कश्मीर फाइल्स फिल्म बनाने वाले फिल्मकार का धन्यवाद किया। जिसने कश्मीरी हिंदुओं के पलायन का दर्द दुनिया को दिखाया। उन्होंने कहा कि फिल्म में पलायन का दर्द बेहद कम दिखाया गया है। इससे कई गुना ज्यादा परेशानी पंडितों और उनके परिवारों ने झेली है।