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खेलपथ संवाद
लखनऊ। कोई दो साल पहले भारतीय ओलम्पिक संघ के कोषाध्यक्ष आनंदेश्वर पांडेय को कॉमनवेल्थ वोकेशनल यूनिवर्सिटी बैंकाक द्वारा फिजिकल एजूकेशन के क्षेत्र में पीएचडी की मानद उपाधि प्रदान की गई थी। चापलूसों का कहना है कि यह उपाधि उन्हें खेल के क्षेत्र में किए गए असाधारण कामकाज को देखते हुए दी गई। किसी भारतीय को इस तरह की मानद उपाधि मिलना निःसंदेह खुशी की बात है लेकिन एक सवाल यह भी उठता है कि यदि आनंदेश्वर पांडेय खेलों में इतने ही कर्मठ हैं तो उन्हें किसी भारतीय यूनिवर्सिटी द्वारा इस तरह का सम्मान क्यों नहीं दिया गया।
दरअसल, हमारे देश में चापलूसों की कमी नहीं है, यह मानद उपाधि भी चापलूसी का जीवंत उदाहरण है। खेलों से जमीनी स्तर से जुड़े लोगों का कहना है कि जिस शख्स ने उत्तर प्रदेश में खेलों का सत्यानाश कर रखा हो, वह भला सम्मान के काबिल कैसे हो सकता है। आनंदेश्वर पांडेय ने खेलों में अच्छे काम किए होते तो उन्हें देश ही नहीं उत्तर प्रदेश की कोई न कोई यूनिवर्सिटी ही मानद उपाधि देकर जरूर अलंकृत करती।
खैर, दो साल पहले खेल निदेशक आरपी सिंह ने अवध जिमखाना क्लब में आयोजित सम्मान समारोह में आनन्देश्वर पाण्डेय की इस उपलब्धि पर कसीदे गढ़ते हुए कहा था कि किसी भी विदेशी यूनिवर्सिटी से खेल के क्षेत्र में पीएचडी की मानद डिग्री पाने वाले पहले व्यक्ति बनकर पाण्डेय ने देश व प्रदेश का नाम रोशन किया है। उनका जीवन प्रदेश में खेलों के विकास के लिए समर्पित लोगों में एक नायाब उदाहरण है। चार दशक से उत्तर प्रदेश के खेलों को उन्होंने नया आयाम देने के लिए महत्वपूर्ण काम किया है।
तब समारोह में सैयद रफत जुबैर रिजवी (लखनऊ ओलम्पिक एसोसिएशन के कार्यकारी अध्यक्ष) ने कहा था कि आनन्देश्वर पाण्डेय ने स्कूलों में शारीरिक शिक्षा को अनिवार्य विषय बनाने के लिए काफी बड़ी पहल की है। अपनी पढ़ाई व खेल में ऊंचाईयां पाने के बावजूद इन्होंने 1977 में नौकरी करने की जगह खेल व खिलाड़ियों के लिए कार्य करने का प्रण लिया। तब आनन्देश्वर पाण्डेय ने कहा था कि सैयद रफत जुबैर रिजवी ने बैंकाक में हुए आयोजन में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। सैयद रफत लखनऊ में खेलों के विकास में लगातार काम कर रहे हैं।