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शतरंज की दुनिया में कुछ अलग करने की ख्वाहिश
लक्ष्य माल्टा में होने वाली विश्व शौकिया शतरंज चैम्पियनशिप जीतना
श्रीप्रकाश शुक्ला
पटना। दुनिया भर में न जाने कितने खेल खेले जाते हैं। कुछ खेल शारीरिक होते हैं तो कुछ मानसिक। कुछ खेल तकनीकी सहायता से खेले जाते हैं तो कुछ खेल भौतिक चीजों के समावेश से खेले जाते हैं। इन्हीं खेलों में से एक सबसे रोचक और मानसिक चेतना को मजबूत करने वाला खेल है शतरंज। इस खेल में देश-दुनिया को कई शातिर मिले हैं, इन्हीं शातिरों में पटना के साकेत कुमार का भी शुमार है। साकेत कुमार न केवल शतरंज को जीते हैं बल्कि दुनिया को कई ग्रैंड मास्टर देने का सपना भी देखते हैं।
हम पटना के शातिर साकेत कुमार की खूबियों की चर्चा करने से पहले अपने पाठकों को बताना चाहते हैं कि कैसे हुई होगी शतरंज के खेल की शुरुआत। किसने लगाया होगा अपना दिमाग कि शतरंज के प्यादे खेल के काम आ सकते हैं। कैसे शतरंज के प्यादों का निर्माण हुआ होगा। सबसे पहली और खास बात यह है कि शतरंज के खेल की शुरुआत भारत में ही हुई और भारत से ही निकल कर यह खेल विश्व के जन-जन के बीच मशहूर हुआ।
माना जाता है कि शतरंज के खेल का आविष्कार भारत में होने के बाद यह पारसी देशों में प्रचलित हुआ, इसके बाद पूरे विश्व में पहुंचा। भारत में शतरंज खेलने की शुरुआत भी पांचवीं-छठीं शताब्दी के समय से मानी जाती है। जब इस खेल की शुरुआत भारत में हुई थी तब यह पहला खेल था जो दिमाग के इस्तेमाल से खेला जाता था। किंवदंतियों के अनुसार शतरंज का आविष्कार गुप्तकाल के समय में हुआ।
वैसे तो महाभारत के प्रसंग में पांडव और कौरव पुत्रों के बीच चौसर का खेल खेला गया था। लेकिन गुप्तकाल के राजाओं ने चौसर के खेल में बदलाव की चाह लिए शतरंज के खेल की शुरुआत की थी। शतरंज का आविष्कार जब हुआ था तब उसे इस नाम की बजाय चतुरंग खेल के नाम से जाना जाता था। यूरोप और रूस जैसे देशों में शतरंज का खेल 9वीं शताब्दी तक पहुंच चुका था। लगातार शतरंज के खेल का प्रसार होता गया और आज लगभग सभी देशों में शतरंज के खेल को अपना लिया गया है।
शतरंज के खेल को अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे-जैसे इस खेल का प्रसार हुआ वैसे वैसे ही इस खेल में कई तब्दीलियां आईं, कई नियम बदले गए तो कुछ देशों ने इस खेल के नाम को भी बदलने में रुचि दिखाई। पुर्तगाल में शतरंज के खेल को जादरेज का नाम दिया गया वहीं स्पेन में शतरंज को एजेडरेज कहा जाता है।
शतरंज खेल के जन्मदाता भारत में एक से बढ़कर एक विश्व प्रसिद्ध शतरंज खिलाड़ी हुए हैं जिन्होंने वैश्विक स्तर पर अपने देश का नाम रोशन किया है। इन खिलाड़ियों में विश्वनाथन आनंद, दिव्येंदु बरुआ, बी. रवि कुमार, आरती रामास्वामी, पी. हरिकृष्ण, मैनुएल ऐरोन, कोनेरू हम्पी आदि के नाम शुमार हैं। अब इस खेल को पटना के साकेत कुमार जैसे युवा भी नई ऊंचाई देने को बेताब हैं। बिहार के पटना निवासी साकेत कुमार न केवल शतरंज में चैम्पियन हैं बल्कि अब वह बैंगलोर में रहकर नई प्रतिभाओं को इस खेल के गुर सिखा रहे हैं। साकेत कुमार ने 21 दिसम्बर को स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में आयोजित (1800 से नीचे फीडे रेटेड) शतरंज टूर्नामेंट जीतकर शानदार कौशल का प्रदर्शन करते हुए भारत को गौरवान्वित किया था। साकेत ने सात दौर के टूर्नामेंट में 6.5 अंक बनाए थे। साकेत इस खेल में महारत हासिल करने के साथ ही नई प्रतिभाओं को ऑनलाइन चेस की ट्रेनिंग भी देते हैं।
पटना का यह शातिर अब तक कई अंतरराष्ट्रीय एफआईडीई रेटेड टूर्नामेंटों में शिरकत कर देश को गौरवान्वित कर चुका है। साकेत ने लुगानो में आयोजित तीसरे अंतरराष्ट्रीय शतरंज टूर्नामेंट में जहां 9वां स्थान हासिल किया तो ग्रीस में विश्व शौकिया शतरंज चैम्पियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए, उन्हें 12वां स्थान मिला। 2015 और 2016 में लास वेगास में आयोजित करोड़पति शतरंज टूर्नामेंट में इस शातिर ने कमाल का प्रदर्शन करते हुए हिन्दुस्तान का गौरव बढ़ाया था। साकेत वर्तमान में कई देशों के 100 से अधिक बच्चों को शतरंज का प्रशिक्षण दे रहे हैं। साकेत कुमार का लक्ष्य माल्टा में होने वाली विश्व शौकिया शतरंज चैम्पियनशिप जीतना है। साकेत की इस खेल के प्रति लगन और मेहनत को देखते हुए भरोसा है कि एक न एक दिन वह अपना हर सपना जरूर पूरा करेगा तथा इस खेल को नया मुकाम देगा।